चार की जगह दो राज्यों में ही चुनाव की घोषणा

चुनाव आयोग को कितने राज्यों में कब चुनाव कराना है, यह उसका अधिकार है। उसके अधिकार पर सवाल नहीं उठाना चाहिए लेकिन हमारे देश में हर बात पर राजनीति करने की परंपरा है, इसलिए चुनाव आयोग ने फिलहाल दो राज्यों जम्मू कश्मीर व हरियाणा विधानसभा चुनाव की घोषणा की गई है। इसकी आलोचना करने वालों की तर्क है कि चुनाव आयोग को कायदे से तो चार राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने थे लेकिन उसने दो ही राज्य जम्मू कश्मीर व हरियाणा में चुनाव कराने का फैसला किया है तथा महाराष्ट्र व झारखंड का चुनाव बाद में कराने का संकेत दिया है। चुनाव आयोग के फैसले की आलोचना करने वालों का तर्क है कि चूंकि महाराष्ट्र व झारखंड में भाजपा की बुरी हालत है, उसका चुनाव हारना तय है, इसलिए वहां तैयारी के लिए भाजपा को समय देने के लिए चुनाव आयोग ने चाराें राज्यों में एक साथ चुनाव कराने की जगह दो राज्यों में पहले चुनाव व दो राज्यों में बाद में चुनाव कराने का फैसला किया है। चुनाव आयोग ने जम्मू कश्मीर में तीन चरण तथा हरियाणा में एक चरण में मतदान कराने का फैसला किया है। इसमें जम्मू कश्मीर में चुनाव कराने की मांग तो लंबे समय से की जा रही थी। लंबे समय से चुनाव नहीं कराने के कारण माना जा रहा था कि सरकार यहां चुनाव कराना नहीं चाहती है। जबकि सरकार चुनाव कराने के लिए सही समय का इंतजार कर रही थी.वह चाहती थी यहां होने वाले चुनाव का यह संदेश जाना चाहिेए कि यहां के लोग लोकतंत्र चाहते हैं, भारत की मुख्य राजनीतिक धारा में शामिल होना चाहते हैं।चुनाव कराने के लिए जरूरी था कि यहां के अलगाववादी, आतंकवादी तत्वाें को पहले सफाया हो। दस साल में सरकार ने कश्मीर से तो सफाया कर दिया है, लेकिन जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों ने हमले कर दुनिया को यह बताने की कोशिश की है जम्मू कश्मीर से अभी आतंकवाद समाप्त नहीं हुआ है। सरकार जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों का उसी तरह सफाया कर रही है जैसे कश्मीर में किया। उसकी कोशिश है कि जम्मू कश्मीर के चुनाव के दौरान कोई आतंकवादी हिंसा न हो। ताकि दुनिया को संदेश दिया जा सके कि जम्मू कश्मीर में अब शांति है, यहां से अलगाववाद व आतंकवाद व उनके समर्थकों का सफाया कर दिया गया है। अब जम्मू कश्मीर का विकास भी देश के अन्य राज्यों की तरह तेजी से होगा। यहां भाजपा, कांग्रेस,नेकां, पीडीपी के अलावा कई छोटे दल भी चुनाव मैदान में होंगे,इसलिए माना जा रहा है कि यहां चुनाव बहुकोणीय हो सकते हैं। हो सकता है कि किसी दल को बहुमत न मिले। कई दलों की साझा सरकार बने। चुनाव के बाद जैसी भी सरकार बने वह यहां के लोगों की चुनी हुई सरकार होगी। इसके बाद राज्य का विकास चुनी हुई सरकार की होगी। जहां तक हरियाणा चुनाव का सवाल है तो वहां भाजपा व कांग्रेस ही बड़े दल हैं। मुकाबला तो इनके बीच ही होना है लेकिन सरकार किसकी बनेगी इसका फैसला छोटे दलों में जीतने वाले दल किसके साथ जाते हैं, इस बात पर निर्भर करेगी. पिछली बार भाजपा ने छोटे दल के सहयोग से ही सरकार बनाई व चलाई। भाजपा को सरकार मे दस साल हो गए है। लोगों में नाराजगी तो होगी ही, सीएम बदल कर यह नाराजगी कम करने का प्रयास किया गया, सरकार ने चुनाव के पहले किसानों के लिए घोषणाएं कर उनको खुश करने का प्रयास किया है। भाजपा के लिए अच्छी बात यह है कि उसकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे है। किसानों को सरकार के विरोध में खड़ा कर माहौल बनाने का प्रयास पूरे पांच साल किया गया है। कांग्रेस व किसान संगठन इसमें कितना सफल हुए है, इसका पता तो चुनाव परिणाम से चलेगा। कांग्रेस चुनाव जीतने का दावा कर रही है लेकिन यहां कांग्रेस की गुटबाजी ही उसके लिए सबसे बड़ी समस्या है। हुड्डा गुट व शैलजा गुट दोनों एक कांग्रेस को जिताने की जगह एक दूसरे को हराने में ज्यादा रुचि लेते है, इसलिए यहां दो चुनाव हो गए कांग्रेस हार रही है। कांग्रेस आलाकमान की कोशिश है कि पहले दोनों को चुनाव जीतने के लिए एकजुट किया जाए जैसा कर्नाटक में किया गया। सीएम का फैसला चुनाव जीतने के बाद कर लिया जाएगा। भाजपा की कोशिश है कि यहां से तीसरी बार चुनाव जीतकर भाजपा को और मजबूत किया जाए। भले ही बहुमत न मिले लेकिन सरकार भाजपा की ही बननी चाहिए। भाजपा जानती है कांग्रेस के एक राज्य में जीत का मतलब है कि कांग्रेस का और मजबूत होना।भाजपा नहीं चाहेगी कि कांग्रेस किसी राज्य व देश में मजबूत हो। कांग्रेस को कमजोर बनाए रखना है तो उसकी सरकार ज्यादा राज्यों में नहीं होनी चाहिए।खासकर बड़े राज्यों में तो कांग्रेस की सरकार किसी कीमत पर नहीं बनने देनी है।

चार की जगह दो राज्यों में ही चुनाव की घोषणा
चुनाव आयोग को कितने राज्यों में कब चुनाव कराना है, यह उसका अधिकार है। उसके अधिकार पर सवाल नहीं उठाना चाहिए लेकिन हमारे देश में हर बात पर राजनीति करने की परंपरा है, इसलिए चुनाव आयोग ने फिलहाल दो राज्यों जम्मू कश्मीर व हरियाणा विधानसभा चुनाव की घोषणा की गई है। इसकी आलोचना करने वालों की तर्क है कि चुनाव आयोग को कायदे से तो चार राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने थे लेकिन उसने दो ही राज्य जम्मू कश्मीर व हरियाणा में चुनाव कराने का फैसला किया है तथा महाराष्ट्र व झारखंड का चुनाव बाद में कराने का संकेत दिया है। चुनाव आयोग के फैसले की आलोचना करने वालों का तर्क है कि चूंकि महाराष्ट्र व झारखंड में भाजपा की बुरी हालत है, उसका चुनाव हारना तय है, इसलिए वहां तैयारी के लिए भाजपा को समय देने के लिए चुनाव आयोग ने चाराें राज्यों में एक साथ चुनाव कराने की जगह दो राज्यों में पहले चुनाव व दो राज्यों में बाद में चुनाव कराने का फैसला किया है। चुनाव आयोग ने जम्मू कश्मीर में तीन चरण तथा हरियाणा में एक चरण में मतदान कराने का फैसला किया है। इसमें जम्मू कश्मीर में चुनाव कराने की मांग तो लंबे समय से की जा रही थी। लंबे समय से चुनाव नहीं कराने के कारण माना जा रहा था कि सरकार यहां चुनाव कराना नहीं चाहती है। जबकि सरकार चुनाव कराने के लिए सही समय का इंतजार कर रही थी.वह चाहती थी यहां होने वाले चुनाव का यह संदेश जाना चाहिेए कि यहां के लोग लोकतंत्र चाहते हैं, भारत की मुख्य राजनीतिक धारा में शामिल होना चाहते हैं।चुनाव कराने के लिए जरूरी था कि यहां के अलगाववादी, आतंकवादी तत्वाें को पहले सफाया हो। दस साल में सरकार ने कश्मीर से तो सफाया कर दिया है, लेकिन जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों ने हमले कर दुनिया को यह बताने की कोशिश की है जम्मू कश्मीर से अभी आतंकवाद समाप्त नहीं हुआ है। सरकार जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों का उसी तरह सफाया कर रही है जैसे कश्मीर में किया। उसकी कोशिश है कि जम्मू कश्मीर के चुनाव के दौरान कोई आतंकवादी हिंसा न हो। ताकि दुनिया को संदेश दिया जा सके कि जम्मू कश्मीर में अब शांति है, यहां से अलगाववाद व आतंकवाद व उनके समर्थकों का सफाया कर दिया गया है। अब जम्मू कश्मीर का विकास भी देश के अन्य राज्यों की तरह तेजी से होगा। यहां भाजपा, कांग्रेस,नेकां, पीडीपी के अलावा कई छोटे दल भी चुनाव मैदान में होंगे,इसलिए माना जा रहा है कि यहां चुनाव बहुकोणीय हो सकते हैं। हो सकता है कि किसी दल को बहुमत न मिले। कई दलों की साझा सरकार बने। चुनाव के बाद जैसी भी सरकार बने वह यहां के लोगों की चुनी हुई सरकार होगी। इसके बाद राज्य का विकास चुनी हुई सरकार की होगी। जहां तक हरियाणा चुनाव का सवाल है तो वहां भाजपा व कांग्रेस ही बड़े दल हैं। मुकाबला तो इनके बीच ही होना है लेकिन सरकार किसकी बनेगी इसका फैसला छोटे दलों में जीतने वाले दल किसके साथ जाते हैं, इस बात पर निर्भर करेगी. पिछली बार भाजपा ने छोटे दल के सहयोग से ही सरकार बनाई व चलाई। भाजपा को सरकार मे दस साल हो गए है। लोगों में नाराजगी तो होगी ही, सीएम बदल कर यह नाराजगी कम करने का प्रयास किया गया, सरकार ने चुनाव के पहले किसानों के लिए घोषणाएं कर उनको खुश करने का प्रयास किया है। भाजपा के लिए अच्छी बात यह है कि उसकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे है। किसानों को सरकार के विरोध में खड़ा कर माहौल बनाने का प्रयास पूरे पांच साल किया गया है। कांग्रेस व किसान संगठन इसमें कितना सफल हुए है, इसका पता तो चुनाव परिणाम से चलेगा। कांग्रेस चुनाव जीतने का दावा कर रही है लेकिन यहां कांग्रेस की गुटबाजी ही उसके लिए सबसे बड़ी समस्या है। हुड्डा गुट व शैलजा गुट दोनों एक कांग्रेस को जिताने की जगह एक दूसरे को हराने में ज्यादा रुचि लेते है, इसलिए यहां दो चुनाव हो गए कांग्रेस हार रही है। कांग्रेस आलाकमान की कोशिश है कि पहले दोनों को चुनाव जीतने के लिए एकजुट किया जाए जैसा कर्नाटक में किया गया। सीएम का फैसला चुनाव जीतने के बाद कर लिया जाएगा। भाजपा की कोशिश है कि यहां से तीसरी बार चुनाव जीतकर भाजपा को और मजबूत किया जाए। भले ही बहुमत न मिले लेकिन सरकार भाजपा की ही बननी चाहिए। भाजपा जानती है कांग्रेस के एक राज्य में जीत का मतलब है कि कांग्रेस का और मजबूत होना।भाजपा नहीं चाहेगी कि कांग्रेस किसी राज्य व देश में मजबूत हो। कांग्रेस को कमजोर बनाए रखना है तो उसकी सरकार ज्यादा राज्यों में नहीं होनी चाहिए।खासकर बड़े राज्यों में तो कांग्रेस की सरकार किसी कीमत पर नहीं बनने देनी है।