भू-वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय है मनेंद्रगढ़ का राष्ट्रीय मरीन गोंडवाना फॉसिल्स पार्क

रंजीत सिंह मनेन्द्रगढ़, 15 मार्च (छत्तीसगढ़ संवाददाता)। विश्व में ख्यातिप्राप्त कई विश्वस्तरीय भू-वैज्ञानिकों के लिए शोघ का विषय राष्ट्रीय मरीन गोंडवाना फॉसिल्स पार्क नवीन जिला एमसीबी के जिला मुख्यालय मनेंद्रगढ़ में स्थित है। मनेंद्रगढ़ में हसदो नदी के दाहिने तट और दक्षिण-पूर्व रेलवे पुल के निकट बसे आमाखेरवा में पहली बार समुद्री जीवाश्म सन् 1982 में पाए गए जिसे विश्व स्तर के वैज्ञानिक गोंडवाना फॉसिल्स पार्क के नाम से जानते हैं, और समय-समय पर उसका अध्ययन करने मनेंद्रगढ़ आते रहते हैं। क्या है राष्ट्रीय मरीन गोंडवाना फॉसिल्स पार्क वैज्ञानिकों के अनुसार 28 करोड़ साल पूर्व वर्तमान हसदो नदी के स्थान पर एक हिम नदी थी, जिसमें बाद में एक लंबी पतली पट्टिका के रूप में समुद्र का प्रवेश हुआ जिसे टथिस सी कहा जाता है, जिसके माध्यम से समुद्री जीव-जंतु मनेंद्रगढ़ की वर्तमान हसदो नदी के तट पर रहते थे जो धीरे-धीरे खत्म हो गए, लेकिन उनके जीवाश्म आज भी उक्त स्थल पर स्थित चट्टानों में देखे जा सकते हैं, जिसका वैज्ञानिकों ने नमूना लेकर विश्व स्तर की लैब में परीक्षण कर यह घोषणा की और बताया कि वह 28 करोड़ साल पुराने हैं, तभी से उक्त स्थल का विज्ञान नाम मरीन गोंडवाना फॉसिल्स पार्क दिया गया। विशेष पर्यटन क्षेत्र घोषित करने की मांग वरिष्ठ पुरातत्ववेत्ता एवं पर्यावरणविद सतीश उपाध्याय ने छत्तीसगढ़ पर्यटन मंत्रालय से मनेद्रगढ़ के मेरिन फॉसिल्स को विशेष पर्यटन क्षेत्र घोषित करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि मनेद्रगढ़ के हसदेव नदी के तट पर 28 करोड़ साल पुराने मेरीन फॉसिल्स पार्क जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की नेशनल जियोलॉजिकल मॉन्यूमेंट्स में उल्लेखित है। मेरीन फॉसिल्स के निर्माण की प्रक्रिया पर उन्होंने यह जानकारी दी कि करोड़ों वर्ष पूर्व चीन तथा तिब्बत के पत्थर के प्लेट में आपस में टकराव की वजह से जमीन में बड़ा बदलाव आया था। दो प्लेटों के टकराने की वजह से हिमालय का निर्माण हुआ, साथ ही जमीन की सतह ऊपर उठ गई इस वजह से समुद्र विलुप्त हो गया, और समुद्री जीवाश्म के अवशेष पत्थरों में दबे रह गए जो फॉसिल्स के रूप में सामने आए हैं जो भूगर्भ वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय है। 1954 में की गई खोज मनेद्रगढ़ के मेरिन फॉसिल्स साइट को पहली बार 1954 में खोजा गया था, जो एक किमी क्षेत्र में समुद्री जीवन एवं वनस्पतियों के जीवाश्म से भरा हुआ था। पुरातत्ववेत्ता उपाध्याय का कहना है कि संभव है जो जीवाश्म शोधकर्ताओं एवं भू वैज्ञानिकों के सामने आए हैं, वे बाई बाल्व मोलस्का, यूरीडेस्मा, एवीक्युलोपेक्टेन आदि समुद्री जीवों के जीवाश्म हो सकते हैं। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति का वैज्ञानिक प्रमाण ये फॉसिल्स शोध के बंद अध्याय को प्रारंभ कर सकते हैं, क्योंकि जीवाश्म की इसी अध्ययन से पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति का वैज्ञानिक पुख्ता प्रमाण मिल सकता है। उपाध्याय ने इसे विश्व की अनमोल धरोहर बताते हुए कहा कि यह स्थल भारतीय एवं अंतर्राष्ट्रीय भूगर्भीय संस्थान के वैज्ञानिक तथ्यों द्वारा प्रमाणित है, जो ब्रह्मांड में पृथ्वी की उपस्थिति एवं जीवन निर्माण का भी जीवंत प्रमाण है। गैरी डी. मिंक की पुस्तक में भी इसका उल्लेख इस फॉसिल्स के संबंध में जानकारी लेखक गैरी डी. मिंक की पुस्तक गोडवाना सिक्स स्पेक्ट्रोग्र्गामी सेडिमेंटोलॉजी और पैलियोनटोलाजी में भी मिलता है। इसी प्रकार अनीश कुमार की पुस्तक फॉसिल्स एंड अस साइंस इंडियन जनरल ऑफ जियोलॉजी कोलकाता में भी मनेंद्रगढ़ के 28 करोड़ वर्ष पुराने मेरीन फॉसिल्स का उल्लेख किया गया है। इंटेक्स द्वारा मार्च 2016 में प्रकाशित पुस्तक हेरीटेज मॉन्यूमेंट्स ऑफ इंडिया में 26 स्थलों का उल्लेख है इसमें मनेद्रगढ़ के इस फॉसिल्स का भी जानकारी बताई जाती है। मनेद्रगढ़ में यह गोंडवाना मेरिन फॉसिल्स की उत्पत्ति कैसे हुई? वरिष्ठ पुरातत्ववेत्ता एवं पर्यावरणविद सतीश उपाध्याय ने जो तथ्य दिए हैं उसके हिसाब से मनेद्रगढ़ पहुंचने के पहले समुद्र का बंगाल की खाड़ी से पतली रेखा (टथिस)के रूप में, सुबनसिरी, खेलगांव, दुधिनाला, राजहरा, डाल्टनगंज, मनेंद्रगढ़ से उमरिया होते हुए राजस्थान की ओर इसका प्रवाह था। उन्होंने बताया कि भारत में अन्य सर्वेक्षण एवं भू- वैज्ञानिकों के सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में चार जगह फॉसिल्स प्रमाणित रूप से पाए गए हैं उसमें खेमगांव (सिक्किम), राजहरा (झारखंड), सुबासरी (अरुणाचल प्रदेश), दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) है। उपाध्याय ने बताया कि जैव विविधता अधिनियम 2002 की धारा 37 के प्रावधानों के अंतर्गत सर्वेक्षण दल गठन किया गया है जो समय-समय पर अपनी रिपोर्ट संबंधित विभाग को प्रेषित करता है।

भू-वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय है मनेंद्रगढ़ का राष्ट्रीय मरीन गोंडवाना फॉसिल्स पार्क
रंजीत सिंह मनेन्द्रगढ़, 15 मार्च (छत्तीसगढ़ संवाददाता)। विश्व में ख्यातिप्राप्त कई विश्वस्तरीय भू-वैज्ञानिकों के लिए शोघ का विषय राष्ट्रीय मरीन गोंडवाना फॉसिल्स पार्क नवीन जिला एमसीबी के जिला मुख्यालय मनेंद्रगढ़ में स्थित है। मनेंद्रगढ़ में हसदो नदी के दाहिने तट और दक्षिण-पूर्व रेलवे पुल के निकट बसे आमाखेरवा में पहली बार समुद्री जीवाश्म सन् 1982 में पाए गए जिसे विश्व स्तर के वैज्ञानिक गोंडवाना फॉसिल्स पार्क के नाम से जानते हैं, और समय-समय पर उसका अध्ययन करने मनेंद्रगढ़ आते रहते हैं। क्या है राष्ट्रीय मरीन गोंडवाना फॉसिल्स पार्क वैज्ञानिकों के अनुसार 28 करोड़ साल पूर्व वर्तमान हसदो नदी के स्थान पर एक हिम नदी थी, जिसमें बाद में एक लंबी पतली पट्टिका के रूप में समुद्र का प्रवेश हुआ जिसे टथिस सी कहा जाता है, जिसके माध्यम से समुद्री जीव-जंतु मनेंद्रगढ़ की वर्तमान हसदो नदी के तट पर रहते थे जो धीरे-धीरे खत्म हो गए, लेकिन उनके जीवाश्म आज भी उक्त स्थल पर स्थित चट्टानों में देखे जा सकते हैं, जिसका वैज्ञानिकों ने नमूना लेकर विश्व स्तर की लैब में परीक्षण कर यह घोषणा की और बताया कि वह 28 करोड़ साल पुराने हैं, तभी से उक्त स्थल का विज्ञान नाम मरीन गोंडवाना फॉसिल्स पार्क दिया गया। विशेष पर्यटन क्षेत्र घोषित करने की मांग वरिष्ठ पुरातत्ववेत्ता एवं पर्यावरणविद सतीश उपाध्याय ने छत्तीसगढ़ पर्यटन मंत्रालय से मनेद्रगढ़ के मेरिन फॉसिल्स को विशेष पर्यटन क्षेत्र घोषित करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि मनेद्रगढ़ के हसदेव नदी के तट पर 28 करोड़ साल पुराने मेरीन फॉसिल्स पार्क जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की नेशनल जियोलॉजिकल मॉन्यूमेंट्स में उल्लेखित है। मेरीन फॉसिल्स के निर्माण की प्रक्रिया पर उन्होंने यह जानकारी दी कि करोड़ों वर्ष पूर्व चीन तथा तिब्बत के पत्थर के प्लेट में आपस में टकराव की वजह से जमीन में बड़ा बदलाव आया था। दो प्लेटों के टकराने की वजह से हिमालय का निर्माण हुआ, साथ ही जमीन की सतह ऊपर उठ गई इस वजह से समुद्र विलुप्त हो गया, और समुद्री जीवाश्म के अवशेष पत्थरों में दबे रह गए जो फॉसिल्स के रूप में सामने आए हैं जो भूगर्भ वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय है। 1954 में की गई खोज मनेद्रगढ़ के मेरिन फॉसिल्स साइट को पहली बार 1954 में खोजा गया था, जो एक किमी क्षेत्र में समुद्री जीवन एवं वनस्पतियों के जीवाश्म से भरा हुआ था। पुरातत्ववेत्ता उपाध्याय का कहना है कि संभव है जो जीवाश्म शोधकर्ताओं एवं भू वैज्ञानिकों के सामने आए हैं, वे बाई बाल्व मोलस्का, यूरीडेस्मा, एवीक्युलोपेक्टेन आदि समुद्री जीवों के जीवाश्म हो सकते हैं। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति का वैज्ञानिक प्रमाण ये फॉसिल्स शोध के बंद अध्याय को प्रारंभ कर सकते हैं, क्योंकि जीवाश्म की इसी अध्ययन से पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति का वैज्ञानिक पुख्ता प्रमाण मिल सकता है। उपाध्याय ने इसे विश्व की अनमोल धरोहर बताते हुए कहा कि यह स्थल भारतीय एवं अंतर्राष्ट्रीय भूगर्भीय संस्थान के वैज्ञानिक तथ्यों द्वारा प्रमाणित है, जो ब्रह्मांड में पृथ्वी की उपस्थिति एवं जीवन निर्माण का भी जीवंत प्रमाण है। गैरी डी. मिंक की पुस्तक में भी इसका उल्लेख इस फॉसिल्स के संबंध में जानकारी लेखक गैरी डी. मिंक की पुस्तक गोडवाना सिक्स स्पेक्ट्रोग्र्गामी सेडिमेंटोलॉजी और पैलियोनटोलाजी में भी मिलता है। इसी प्रकार अनीश कुमार की पुस्तक फॉसिल्स एंड अस साइंस इंडियन जनरल ऑफ जियोलॉजी कोलकाता में भी मनेंद्रगढ़ के 28 करोड़ वर्ष पुराने मेरीन फॉसिल्स का उल्लेख किया गया है। इंटेक्स द्वारा मार्च 2016 में प्रकाशित पुस्तक हेरीटेज मॉन्यूमेंट्स ऑफ इंडिया में 26 स्थलों का उल्लेख है इसमें मनेद्रगढ़ के इस फॉसिल्स का भी जानकारी बताई जाती है। मनेद्रगढ़ में यह गोंडवाना मेरिन फॉसिल्स की उत्पत्ति कैसे हुई? वरिष्ठ पुरातत्ववेत्ता एवं पर्यावरणविद सतीश उपाध्याय ने जो तथ्य दिए हैं उसके हिसाब से मनेद्रगढ़ पहुंचने के पहले समुद्र का बंगाल की खाड़ी से पतली रेखा (टथिस)के रूप में, सुबनसिरी, खेलगांव, दुधिनाला, राजहरा, डाल्टनगंज, मनेंद्रगढ़ से उमरिया होते हुए राजस्थान की ओर इसका प्रवाह था। उन्होंने बताया कि भारत में अन्य सर्वेक्षण एवं भू- वैज्ञानिकों के सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में चार जगह फॉसिल्स प्रमाणित रूप से पाए गए हैं उसमें खेमगांव (सिक्किम), राजहरा (झारखंड), सुबासरी (अरुणाचल प्रदेश), दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) है। उपाध्याय ने बताया कि जैव विविधता अधिनियम 2002 की धारा 37 के प्रावधानों के अंतर्गत सर्वेक्षण दल गठन किया गया है जो समय-समय पर अपनी रिपोर्ट संबंधित विभाग को प्रेषित करता है।