तंजानिया में मोटे अनाज की खेती करना सिखाएंगे यूपी के किसान
तंजानिया में मोटे अनाज की खेती करना सिखाएंगे यूपी के किसान
उत्तर प्रदेश के दर्जनों किसान पूर्वी अफ्रीकी देश तंजानिया में किसानों को मिलेट्स यानी मोटे अनाज की खेती और उनके व्यावसायिक उपयोग की तकनीक सिखाने के लिए जाएंगे.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
यूपी की एक एग्रो स्टार्ट-अप कंपनी न्यूट्रेलिस से जुड़े किसान अगले कुछ दिनों में तंजानिया के किसानों को बाजरा, रागी, कुट्टू जैसे मोटे अनाज की खेती का प्रशिक्षण देने के लिए तंजानिया जाएंगे. कंपनी के संस्थापक प्रदीप द्विवेदी ने बताया कि वहां के किसानों को इन अनाज से कुकीज जैसे उत्पाद तैयार करने और उन्हें बाजार उपलब्ध कराने का काम भी किया जाएगा.
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के रहने वाले प्रदीप द्विवेदी ने करीब दस साल पहले न्यूट्रेलिस एग्रो फूड नाम से एग्रो स्टार्ट-अप कंपनी बनाई थी. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं, हम लोग किसानों को ऑर्गेनिक तरीके से तमाम फसलों की खेती करने का प्रशिक्षण देने के साथ-साथ शुरुआती दौर में उन्हें आर्थिक सहयोग भी देते हैं. देश भर में अब तक करीब चालीस हजार किसानों को इस तरह का प्रशिक्षण दिया जा चुका है और उन्हें देखकर दूसरे किसान भी इस तरह की व्यावसायिक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं. कुछ दिन पहले ही हमें तंजानिया के किसानों को श्रीअन्न की खेती का प्रशिक्षण देने और वहां एक बीज उत्पादन इकाई लगाने का प्रस्ताव मिला है. इसके लिए तंजानिया एग्रीकल्चरल कैटालिक ट्रस्ट (TACT) और अमेरिका की एपेक्स होल्डिंग कंपनी के साथ समझौता किया गया है. इसके तहत हम वहां के किसानों को खेती का प्रशिक्षण देंगे और तंजानिया का कैटालिक ट्रस्ट इनसे कुकीज जैसे उत्पाद तैयार कराकर अमेरिका के रीटेल चेन को उपलब्ध कराएगा.
प्रदीप द्विवेदी बताते हैं कि तंजानिया में मिलेट्स की एक बीज उत्पादन इकाई लगाई जाएगी जिसके लिए ट्रस्ट ने 67 एकड़ जमीन उपलब्ध कराने का फैसला किया है. इसके बाद यूपी के तमाम किसान वहां के 1,000 किसानों को मिलेट्स की खेती का प्रशिक्षण देंगे. प्रदीप बताते हैं कि यहां से दो-तीन प्रगतिशील किसान बारी-बारी से वहां किसानों को प्रशिक्षण देने जाएंगे.
ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा
प्रदीप बताते हैं कि किसानों को पारंपरिक खेती से हटकर ऑर्गेनिक तरीके से व्यावसायिक खेती की ओर मोड़ने के लिए वो पिछले करीब दस साल से काम कर रहे हैं. इसके लिए भारत भर के अलग-अलग राज्यों से उन्होंने हजारों किसानों का एक नेटवर्क तैयार कर रखा है. वह कहते हैं कि इसके लिए पहले किसानों को जरूरी संसाधन और मदद देकर उनकी आमदनी बढ़ाने की कोशिश की जाती है, साथ ही फास्ट फूड की ओर भाग रहे आम लोगों तक शुद्ध और पौष्टिक खाद्य पदार्थ पहुंचाया जाता है.
उत्तर प्रदेश में आज से करीब तीन-चार दशक पहले तक ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाज की बड़े पैमाने पर खेती होती थी लेकिन धीरे-धीरे किसानों में इन खाद्यान्नों की खेती में दिलचस्पी कम होती गई. वजह थी- इनकी मांग का कम होना. लेकिन महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे दूसरे राज्यों के अलावा यूपी में भी इस खेती की ओर कुछ किसान रुख कर रहे हैं. प्रदीप बताते हैं कि यूपी में उन्होंने सबसे पहले फतेहपुर में 250 किसानों का एक समूह बनाया और उन्हें मिलेट्स की खेती का प्रशिक्षण दिया और आर्थिक सहयोग भी दिया. इसके अलावा उनके उत्पाद की मार्केटिंग के लिए खुद ही एक सेंटर खोला.
वह बताते हैं, यूपी के किसानों के अलावा आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के किसानों से क्लस्टर में हमने मिलेट्स की खेती शुरू कराई. सबसे पहले इनसे चिया के बीज, तुलसी, किनोवा और सरसों आदि फसलों की बुआई करानी शुरू की. इनके उत्पाद की मार्केटिंग और बिक्री के लिए ही स्टार्ट-अप की स्थापना की. अब किसानों से दर्जनों तरह के मिलेट्स से जुड़े उत्पाद तैयार करा रहे हैं जिनकी न सिर्फ देश में जबर्दस्त मांग है बल्कि विदेशों में निर्यात भी कर रहे हैं.
किसानों का बड़ा नेटवर्क
आईआईटी कानपुर से पढ़ाई कर चुके प्रदीप द्विवेदी ने कई मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने के बाद खुद ऑर्गेनिक खेती की ओर रुख किया और अन्य किसानों को भी अपने साथ जोड़ा. प्रदीप द्विवेदी बताते हैं कि उनके साथ करीब 40 हजार किसान सीधे तौर पर जुड़े हैं, जिन्हें इसका सीधा फायदा मिलता है. इसके अलावा सैकड़ों लोगों को उनके जरिए सीधे रोजगार भी मिला हुआ है.
इस नेटवर्क से जुड़े फतेहपुर के एक किसान रवींद्र कुमार ने डीडब्ल्यू को बताया, मेरे पर छह बीघा जमीन है. मैं पहले अपने खेतों में गेहूं, धान, आलू जैसी परंपरागत फसलों की खेती करता था. खाने-पीने भर की चीजें पैदा हो जाती थीं लेकिन उससे आय कोई खास नहीं होती थी. क्योंकि खेती में लागत भी बहुत लगती है. लेकिन जब से मिलेट्स की खेती शुरू की है तो उसका फायदा साफ दिख रहा है. यहां सबसे बड़ी सहूलियत यही है कि हमें कहीं जाकर बाजार तलाशना नहीं पड़ता है. हमें पता रहता है कि हमारा उत्पाद खरीद लिया जाएगा. इसलिए कोई रिस्क नहीं रहता.
दरअसल, नेटवर्क से जुड़े किसानों के उत्पाद खरीदने में न्यूट्रेलिस की मदद किसानों के लिए बहुत अहमियत रखती है. एक तो उन्हें इसके लिए भटकना नहीं पड़ता और दूसरे इसका सही दाम भी मिलता है. प्रदीप द्विवेदी बताते हैं कि मिलेट्स से अलग-अलग तरह के उत्पाद बनाने के लिए हमने कुछ प्लांट्स लगाए हैं और कुछ दूसरे एग्रो फूड कंपनियों से करार किया है जिससे इन उत्पादों की अच्छी खासी मांग है.
उनके मुताबिक, उन्हें कई बड़े और प्रतिष्ठित मंदिरों से प्रसाद के लिए मिलेट्स के लड्डू उपलब्ध कराने का प्रस्ताव मिला है. इसके अलावा ऐसे ही कई अन्य प्रस्ताव भी मिले हैं. उनकी कंपनी दर्जनों किस्म के बिस्किट्स, कुकीज जैसे मिलेट्स से बने उत्पाद तैयार करती है, जिनकी सप्लाई भारत के अलावा ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में भी की जाती है. यही नहीं, कंपनी करीब सौ एकड़ जमीन पर सिर्फ तुलसी का उत्पादन कराती है, जिसका इस्तेमाल कई अन्य उत्पादों में होता है.
मिलेट्स यानी मोटे अनाज का इस्तेमाल पूरी दुनिया बढ़ता जा रहा है. साल 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स भ
उत्तर प्रदेश के दर्जनों किसान पूर्वी अफ्रीकी देश तंजानिया में किसानों को मिलेट्स यानी मोटे अनाज की खेती और उनके व्यावसायिक उपयोग की तकनीक सिखाने के लिए जाएंगे.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
यूपी की एक एग्रो स्टार्ट-अप कंपनी न्यूट्रेलिस से जुड़े किसान अगले कुछ दिनों में तंजानिया के किसानों को बाजरा, रागी, कुट्टू जैसे मोटे अनाज की खेती का प्रशिक्षण देने के लिए तंजानिया जाएंगे. कंपनी के संस्थापक प्रदीप द्विवेदी ने बताया कि वहां के किसानों को इन अनाज से कुकीज जैसे उत्पाद तैयार करने और उन्हें बाजार उपलब्ध कराने का काम भी किया जाएगा.
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के रहने वाले प्रदीप द्विवेदी ने करीब दस साल पहले न्यूट्रेलिस एग्रो फूड नाम से एग्रो स्टार्ट-अप कंपनी बनाई थी. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं, हम लोग किसानों को ऑर्गेनिक तरीके से तमाम फसलों की खेती करने का प्रशिक्षण देने के साथ-साथ शुरुआती दौर में उन्हें आर्थिक सहयोग भी देते हैं. देश भर में अब तक करीब चालीस हजार किसानों को इस तरह का प्रशिक्षण दिया जा चुका है और उन्हें देखकर दूसरे किसान भी इस तरह की व्यावसायिक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं. कुछ दिन पहले ही हमें तंजानिया के किसानों को श्रीअन्न की खेती का प्रशिक्षण देने और वहां एक बीज उत्पादन इकाई लगाने का प्रस्ताव मिला है. इसके लिए तंजानिया एग्रीकल्चरल कैटालिक ट्रस्ट (TACT) और अमेरिका की एपेक्स होल्डिंग कंपनी के साथ समझौता किया गया है. इसके तहत हम वहां के किसानों को खेती का प्रशिक्षण देंगे और तंजानिया का कैटालिक ट्रस्ट इनसे कुकीज जैसे उत्पाद तैयार कराकर अमेरिका के रीटेल चेन को उपलब्ध कराएगा.
प्रदीप द्विवेदी बताते हैं कि तंजानिया में मिलेट्स की एक बीज उत्पादन इकाई लगाई जाएगी जिसके लिए ट्रस्ट ने 67 एकड़ जमीन उपलब्ध कराने का फैसला किया है. इसके बाद यूपी के तमाम किसान वहां के 1,000 किसानों को मिलेट्स की खेती का प्रशिक्षण देंगे. प्रदीप बताते हैं कि यहां से दो-तीन प्रगतिशील किसान बारी-बारी से वहां किसानों को प्रशिक्षण देने जाएंगे.
ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा
प्रदीप बताते हैं कि किसानों को पारंपरिक खेती से हटकर ऑर्गेनिक तरीके से व्यावसायिक खेती की ओर मोड़ने के लिए वो पिछले करीब दस साल से काम कर रहे हैं. इसके लिए भारत भर के अलग-अलग राज्यों से उन्होंने हजारों किसानों का एक नेटवर्क तैयार कर रखा है. वह कहते हैं कि इसके लिए पहले किसानों को जरूरी संसाधन और मदद देकर उनकी आमदनी बढ़ाने की कोशिश की जाती है, साथ ही फास्ट फूड की ओर भाग रहे आम लोगों तक शुद्ध और पौष्टिक खाद्य पदार्थ पहुंचाया जाता है.
उत्तर प्रदेश में आज से करीब तीन-चार दशक पहले तक ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाज की बड़े पैमाने पर खेती होती थी लेकिन धीरे-धीरे किसानों में इन खाद्यान्नों की खेती में दिलचस्पी कम होती गई. वजह थी- इनकी मांग का कम होना. लेकिन महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे दूसरे राज्यों के अलावा यूपी में भी इस खेती की ओर कुछ किसान रुख कर रहे हैं. प्रदीप बताते हैं कि यूपी में उन्होंने सबसे पहले फतेहपुर में 250 किसानों का एक समूह बनाया और उन्हें मिलेट्स की खेती का प्रशिक्षण दिया और आर्थिक सहयोग भी दिया. इसके अलावा उनके उत्पाद की मार्केटिंग के लिए खुद ही एक सेंटर खोला.
वह बताते हैं, यूपी के किसानों के अलावा आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के किसानों से क्लस्टर में हमने मिलेट्स की खेती शुरू कराई. सबसे पहले इनसे चिया के बीज, तुलसी, किनोवा और सरसों आदि फसलों की बुआई करानी शुरू की. इनके उत्पाद की मार्केटिंग और बिक्री के लिए ही स्टार्ट-अप की स्थापना की. अब किसानों से दर्जनों तरह के मिलेट्स से जुड़े उत्पाद तैयार करा रहे हैं जिनकी न सिर्फ देश में जबर्दस्त मांग है बल्कि विदेशों में निर्यात भी कर रहे हैं.
किसानों का बड़ा नेटवर्क
आईआईटी कानपुर से पढ़ाई कर चुके प्रदीप द्विवेदी ने कई मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने के बाद खुद ऑर्गेनिक खेती की ओर रुख किया और अन्य किसानों को भी अपने साथ जोड़ा. प्रदीप द्विवेदी बताते हैं कि उनके साथ करीब 40 हजार किसान सीधे तौर पर जुड़े हैं, जिन्हें इसका सीधा फायदा मिलता है. इसके अलावा सैकड़ों लोगों को उनके जरिए सीधे रोजगार भी मिला हुआ है.
इस नेटवर्क से जुड़े फतेहपुर के एक किसान रवींद्र कुमार ने डीडब्ल्यू को बताया, मेरे पर छह बीघा जमीन है. मैं पहले अपने खेतों में गेहूं, धान, आलू जैसी परंपरागत फसलों की खेती करता था. खाने-पीने भर की चीजें पैदा हो जाती थीं लेकिन उससे आय कोई खास नहीं होती थी. क्योंकि खेती में लागत भी बहुत लगती है. लेकिन जब से मिलेट्स की खेती शुरू की है तो उसका फायदा साफ दिख रहा है. यहां सबसे बड़ी सहूलियत यही है कि हमें कहीं जाकर बाजार तलाशना नहीं पड़ता है. हमें पता रहता है कि हमारा उत्पाद खरीद लिया जाएगा. इसलिए कोई रिस्क नहीं रहता.
दरअसल, नेटवर्क से जुड़े किसानों के उत्पाद खरीदने में न्यूट्रेलिस की मदद किसानों के लिए बहुत अहमियत रखती है. एक तो उन्हें इसके लिए भटकना नहीं पड़ता और दूसरे इसका सही दाम भी मिलता है. प्रदीप द्विवेदी बताते हैं कि मिलेट्स से अलग-अलग तरह के उत्पाद बनाने के लिए हमने कुछ प्लांट्स लगाए हैं और कुछ दूसरे एग्रो फूड कंपनियों से करार किया है जिससे इन उत्पादों की अच्छी खासी मांग है.
उनके मुताबिक, उन्हें कई बड़े और प्रतिष्ठित मंदिरों से प्रसाद के लिए मिलेट्स के लड्डू उपलब्ध कराने का प्रस्ताव मिला है. इसके अलावा ऐसे ही कई अन्य प्रस्ताव भी मिले हैं. उनकी कंपनी दर्जनों किस्म के बिस्किट्स, कुकीज जैसे मिलेट्स से बने उत्पाद तैयार करती है, जिनकी सप्लाई भारत के अलावा ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में भी की जाती है. यही नहीं, कंपनी करीब सौ एकड़ जमीन पर सिर्फ तुलसी का उत्पादन कराती है, जिसका इस्तेमाल कई अन्य उत्पादों में होता है.
मिलेट्स यानी मोटे अनाज का इस्तेमाल पूरी दुनिया बढ़ता जा रहा है. साल 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स भी घोषित किया गया था, जिसका उद्देश्य यह बताना था कि बीमारियों से बचाव के लिए फाइबर से भरपूर मोटे अनाज का सेवन कितना जरूरी है.(dw.com)