सुप्रीम कोर्ट: उप मुख्यमंत्री का पद संविधान का उल्लंघन नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में उप मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति की परंपरा पर सवाल उठाने वाली एक जनहित याचिका खारिज कर दी. डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट- सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग राज्य सरकारों में उप-मुख्यमंत्रियों (डिप्टी सीएम) की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए सोमवार को कहा कि एक उप-मुख्यमंत्री राज्य सरकार में सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण मंत्री होता है और इस पद का संवैधानिक अर्थों में कोई वास्तविक संबंध नहीं है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा, यह केवल एक पदवी है. भले ही आप किसी को डिप्टी सीएम कहें, लेकिन संवैधानिक दर्जा तो मंत्री का ही है. किसी व्यक्ति विशेष की उप मुख्यमंत्री पद से संबद्धता का संवैधानिक अर्थों में कोई वास्तविक संबंध नहीं है. वे उच्च वेतन नहीं लेते हैं, वे मंत्रिपरिषद के किसी भी अन्य सदस्य की तरह हैं. अधिवक्ता मोहन लाल शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 164 में केवल मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति का प्रावधान है और उप मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति का राज्यों के नागरिकों या जनता से कोई लेना-देना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट उप मुख्यमंत्री अधिक वेतन नहीं लेता बेंच ने याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे वकील से कहा कि उप मुख्यमंत्रियों को केवल दूसरे मंत्रियों से वरिष्ठ माना जाता, लेकिन वे उनसे अधिक वेतन नहीं लेते हैं. इसके बाद वकील ने दलील दी कि उप मुख्यमंत्री की नियुक्ति सरकारी विभाग में अन्य अधिकारियों के लिए गलत उदाहरण स्थापित कर रही है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, उनकी नियुक्ति का आधार क्या है. आधार केवल धर्म और समाज का विशेष संप्रदाय है. ऐसे उप मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्ति का कोई अन्य आधार नहीं है. वकील ने तर्क दिया उप मुख्यमंत्री का पद यह संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है. डिप्टी सीएम की नियुक्ति कोई उल्लंघन नहीं बेंच ने हालांकि कहा कि एक उप मुख्यमंत्री एक विधायक और एक मंत्री होता है. इस प्रकार, यह पद किसी भी संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन नहीं है. जनहित याचिका में सवाल उठाए गए थे कि राज्यों में उप मुख्यमंत्री की नियुक्ति के लिए संविधान में कोई प्रावधान नहीं है. इस पर बेंच ने कहा, एक उप मुख्यमंत्री किसी राज्य की सरकार में सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण मंत्री होता है. उप मुख्यमंत्री का पदनाम संवैधानिक पद का उल्लंघन नहीं है. याचिका में कहा गया कि उप मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति से बड़े पैमाने पर जनता में भ्रम पैदा होता है और राजनीतिक दलों द्वारा काल्पनिक विभाग बनाकर गलत और अवैध उदाहरण स्थापित किए जा रहे हैं क्योंकि उप मुख्यमंत्री कोई भी स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते हैं, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्रियों के बराबर दिखाया जाता है. बेंच ने कहा कि भारत के संविधान के तहत ऐसी नियुक्तियों के लिए कोई प्रावधान किए बिना राज्य सरकारों में उप मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका में सार नहीं है और इसे खारिज किया जाना चाहिए.(dw.com)

सुप्रीम कोर्ट: उप मुख्यमंत्री का पद संविधान का उल्लंघन नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में उप मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति की परंपरा पर सवाल उठाने वाली एक जनहित याचिका खारिज कर दी. डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट- सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग राज्य सरकारों में उप-मुख्यमंत्रियों (डिप्टी सीएम) की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए सोमवार को कहा कि एक उप-मुख्यमंत्री राज्य सरकार में सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण मंत्री होता है और इस पद का संवैधानिक अर्थों में कोई वास्तविक संबंध नहीं है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा, यह केवल एक पदवी है. भले ही आप किसी को डिप्टी सीएम कहें, लेकिन संवैधानिक दर्जा तो मंत्री का ही है. किसी व्यक्ति विशेष की उप मुख्यमंत्री पद से संबद्धता का संवैधानिक अर्थों में कोई वास्तविक संबंध नहीं है. वे उच्च वेतन नहीं लेते हैं, वे मंत्रिपरिषद के किसी भी अन्य सदस्य की तरह हैं. अधिवक्ता मोहन लाल शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 164 में केवल मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति का प्रावधान है और उप मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति का राज्यों के नागरिकों या जनता से कोई लेना-देना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट उप मुख्यमंत्री अधिक वेतन नहीं लेता बेंच ने याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे वकील से कहा कि उप मुख्यमंत्रियों को केवल दूसरे मंत्रियों से वरिष्ठ माना जाता, लेकिन वे उनसे अधिक वेतन नहीं लेते हैं. इसके बाद वकील ने दलील दी कि उप मुख्यमंत्री की नियुक्ति सरकारी विभाग में अन्य अधिकारियों के लिए गलत उदाहरण स्थापित कर रही है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, उनकी नियुक्ति का आधार क्या है. आधार केवल धर्म और समाज का विशेष संप्रदाय है. ऐसे उप मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्ति का कोई अन्य आधार नहीं है. वकील ने तर्क दिया उप मुख्यमंत्री का पद यह संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है. डिप्टी सीएम की नियुक्ति कोई उल्लंघन नहीं बेंच ने हालांकि कहा कि एक उप मुख्यमंत्री एक विधायक और एक मंत्री होता है. इस प्रकार, यह पद किसी भी संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन नहीं है. जनहित याचिका में सवाल उठाए गए थे कि राज्यों में उप मुख्यमंत्री की नियुक्ति के लिए संविधान में कोई प्रावधान नहीं है. इस पर बेंच ने कहा, एक उप मुख्यमंत्री किसी राज्य की सरकार में सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण मंत्री होता है. उप मुख्यमंत्री का पदनाम संवैधानिक पद का उल्लंघन नहीं है. याचिका में कहा गया कि उप मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति से बड़े पैमाने पर जनता में भ्रम पैदा होता है और राजनीतिक दलों द्वारा काल्पनिक विभाग बनाकर गलत और अवैध उदाहरण स्थापित किए जा रहे हैं क्योंकि उप मुख्यमंत्री कोई भी स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते हैं, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्रियों के बराबर दिखाया जाता है. बेंच ने कहा कि भारत के संविधान के तहत ऐसी नियुक्तियों के लिए कोई प्रावधान किए बिना राज्य सरकारों में उप मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका में सार नहीं है और इसे खारिज किया जाना चाहिए.(dw.com)