'शीतयुद्ध की मानसिकता रुस-यूक्रेन संघर्ष का मूल कारण'

बीजिंग, 24 फरवरी । रूस-यूक्रेन मुठभेड़ शुरु हुए 24 फरवरी को दो वर्ष पूरे हो गए। वर्तमान में दोनों देशों की सेनाएं संघर्ष मैदान पर गतिरोध में पड़ी हैं। अमेरिका और यूरोपीय संघ रूस के खिलाफ नये दौर के प्रतिबंध की तैयारी कर रहे हैं। युद्ध विराम की आशा कमजोर दिख रही है। पूरे विश्व में इस मुठभेड़ के कारण के प्रति अधिक गहरी समझ आयी है और युद्ध विराम की आवाज बुलंद हो रही है। यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार दो साल में इस युद्ध में रूस और यूक्रेन की हताहतों की संख्या 5 लाख को पार कर गयी है और यूक्रेन के 1 करोड़ लोग बेघर हो गये हैं। यह मुठभेड़ पैदा होने के बाद विश्व भर में ऊर्जा और खाद्यान्न की कीमतों में तेजी आयी और इसका नकारात्मक प्रभाव निरंतर फैल रहा है। अब विश्व में अधिकांश लोगों में इस बात की समझ आई है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति सिर्फ सरल गणित फोर्म्यूलर नहीं है। शीतयुद्ध की मानसिकता इस युद्ध का मूल कारण है और अमेरिका इस मुकाबले को उकसावा देने वाला है। इसके अलावा इस युद्ध से यह भी साबित हुआ है कि एकतरफा प्रतिबंध से काम नहीं चलता और इसके विपरीत मुकाबला तीव्र होता है। दो साल में अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस पर 13 दौर के प्रतिबंध लगाये। लेकिन, अब तक इससे रूस की सैन्य कार्रवाई और रूस की अर्थव्यवस्था में बड़ा व्यावहारिक प्रभाव नहीं पड़ा। जटिल सवाल का सरल समाधान नहीं है। सुरक्षा सैन्य गुटों के विस्तार से प्राप्त नहीं की जा सकती। यूक्रेन संकट के समाधान का फौरन कार्य यही है कि विभिन्न पक्ष सदिच्छा दिखाकर रूस-यूक्रेन वार्ता के लिए जरूरी शर्तें तैयार करने की समान कोशिश करें। मूल रूप से देखा जाए संतुलित, सर्वांगीण और विवेकतापूर्ण पक्ष पर कायम रहना है। यूक्रेन की प्रभुसत्ता की सुरक्षा की जानी और इसके साथ रूस की युक्तियुक्त सुरक्षा चिंता का सम्मान किया जाना चाहिए।(आईएएनएस)

'शीतयुद्ध की मानसिकता रुस-यूक्रेन संघर्ष का मूल कारण'
बीजिंग, 24 फरवरी । रूस-यूक्रेन मुठभेड़ शुरु हुए 24 फरवरी को दो वर्ष पूरे हो गए। वर्तमान में दोनों देशों की सेनाएं संघर्ष मैदान पर गतिरोध में पड़ी हैं। अमेरिका और यूरोपीय संघ रूस के खिलाफ नये दौर के प्रतिबंध की तैयारी कर रहे हैं। युद्ध विराम की आशा कमजोर दिख रही है। पूरे विश्व में इस मुठभेड़ के कारण के प्रति अधिक गहरी समझ आयी है और युद्ध विराम की आवाज बुलंद हो रही है। यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार दो साल में इस युद्ध में रूस और यूक्रेन की हताहतों की संख्या 5 लाख को पार कर गयी है और यूक्रेन के 1 करोड़ लोग बेघर हो गये हैं। यह मुठभेड़ पैदा होने के बाद विश्व भर में ऊर्जा और खाद्यान्न की कीमतों में तेजी आयी और इसका नकारात्मक प्रभाव निरंतर फैल रहा है। अब विश्व में अधिकांश लोगों में इस बात की समझ आई है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति सिर्फ सरल गणित फोर्म्यूलर नहीं है। शीतयुद्ध की मानसिकता इस युद्ध का मूल कारण है और अमेरिका इस मुकाबले को उकसावा देने वाला है। इसके अलावा इस युद्ध से यह भी साबित हुआ है कि एकतरफा प्रतिबंध से काम नहीं चलता और इसके विपरीत मुकाबला तीव्र होता है। दो साल में अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस पर 13 दौर के प्रतिबंध लगाये। लेकिन, अब तक इससे रूस की सैन्य कार्रवाई और रूस की अर्थव्यवस्था में बड़ा व्यावहारिक प्रभाव नहीं पड़ा। जटिल सवाल का सरल समाधान नहीं है। सुरक्षा सैन्य गुटों के विस्तार से प्राप्त नहीं की जा सकती। यूक्रेन संकट के समाधान का फौरन कार्य यही है कि विभिन्न पक्ष सदिच्छा दिखाकर रूस-यूक्रेन वार्ता के लिए जरूरी शर्तें तैयार करने की समान कोशिश करें। मूल रूप से देखा जाए संतुलित, सर्वांगीण और विवेकतापूर्ण पक्ष पर कायम रहना है। यूक्रेन की प्रभुसत्ता की सुरक्षा की जानी और इसके साथ रूस की युक्तियुक्त सुरक्षा चिंता का सम्मान किया जाना चाहिए।(आईएएनएस)