रांची के मेडिकल कॉलेज रिम्स की बदहाली पर झारखंड हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी

रांची, 27 जून । झारखंड हाईकोर्ट ने रांची स्थित राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में इन्फ्रास्ट्रक्चर और सिस्टम की गड़बड़ियों पर गहरी चिंता जताते हुए तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने मौखिक तौर पर कहा कि अगर राज्य सरकार का स्वास्थ्य विभाग रिम्स की व्यवस्था को दुरुस्त करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा तो इसे बंद कर देना चाहिए। जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय और जस्टिस दीपक रोशन की बेंच ने ज्योति शर्मा की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले में राज्य सरकार के स्वास्थ्य सचिव, भवन निर्माण विभाग के सचिव और रिम्स के डायरेक्टर डॉ. राजकुमार को शुक्रवार में अदालत में सशरीर उपस्थित होने का आदेश दिया है। कोर्ट ने रिम्स के डायरेक्टर से उन डॉक्टरों की लिस्ट मांगी है, जो सरकार से नॉन प्रैक्टिस अलाउंस (एनपीए) लेने के बाद भी प्राइवेट हॉस्पिटल्स और नर्सिंग होम में प्रैक्टिस करते हैं। कोर्ट ने इस बात पर गहरी नाराजगी जताई कि सामान्य मरीजों को बेड तक नहीं मिल पाता और जमीन पर उनका इलाज होता है। यहां इलाज के उपकरणों का मेंटेंनेस नहीं हो पाता और वे लंबे समय तक खराब पड़े रहते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। इसके पहले सुनवाई के दौरान उपस्थित हुए रिम्स के डायरेक्टर ने कोर्ट को बताया कि रिम्स को बेहतर बनाने के लिए कई पहल की जा रही है, लेकिन ब्यूरोक्रेट्स के हस्तक्षेप की वजह से कई काम आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। उनकी ओर से कोर्ट को बताया गया कि रिम्स में करीब 2,600 बेड हैं, जबकि हर रोज यहां ढाई हजार से ज्यादा मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। ऐसी स्थिति में बेड की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। डायरेक्टर ने बताया कि एक करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च करने के लिए रिम्स गवर्निंग बॉडी की बैठक जरूरी होती है, लेकिन इसकी मीटिंग कम होने और टेंडर की लंबी प्रक्रिया के कारण मेडिकल उपकरण लंबे वक्त तक खराब पड़े रह जाते हैं। रिम्स में 148 जगहों पर अतिक्रमण है, जिन्हें हटाना जरूरी है। --(आईएएनएस)

रांची के मेडिकल कॉलेज रिम्स की बदहाली पर झारखंड हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी
रांची, 27 जून । झारखंड हाईकोर्ट ने रांची स्थित राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में इन्फ्रास्ट्रक्चर और सिस्टम की गड़बड़ियों पर गहरी चिंता जताते हुए तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने मौखिक तौर पर कहा कि अगर राज्य सरकार का स्वास्थ्य विभाग रिम्स की व्यवस्था को दुरुस्त करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा तो इसे बंद कर देना चाहिए। जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय और जस्टिस दीपक रोशन की बेंच ने ज्योति शर्मा की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले में राज्य सरकार के स्वास्थ्य सचिव, भवन निर्माण विभाग के सचिव और रिम्स के डायरेक्टर डॉ. राजकुमार को शुक्रवार में अदालत में सशरीर उपस्थित होने का आदेश दिया है। कोर्ट ने रिम्स के डायरेक्टर से उन डॉक्टरों की लिस्ट मांगी है, जो सरकार से नॉन प्रैक्टिस अलाउंस (एनपीए) लेने के बाद भी प्राइवेट हॉस्पिटल्स और नर्सिंग होम में प्रैक्टिस करते हैं। कोर्ट ने इस बात पर गहरी नाराजगी जताई कि सामान्य मरीजों को बेड तक नहीं मिल पाता और जमीन पर उनका इलाज होता है। यहां इलाज के उपकरणों का मेंटेंनेस नहीं हो पाता और वे लंबे समय तक खराब पड़े रहते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। इसके पहले सुनवाई के दौरान उपस्थित हुए रिम्स के डायरेक्टर ने कोर्ट को बताया कि रिम्स को बेहतर बनाने के लिए कई पहल की जा रही है, लेकिन ब्यूरोक्रेट्स के हस्तक्षेप की वजह से कई काम आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। उनकी ओर से कोर्ट को बताया गया कि रिम्स में करीब 2,600 बेड हैं, जबकि हर रोज यहां ढाई हजार से ज्यादा मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। ऐसी स्थिति में बेड की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। डायरेक्टर ने बताया कि एक करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च करने के लिए रिम्स गवर्निंग बॉडी की बैठक जरूरी होती है, लेकिन इसकी मीटिंग कम होने और टेंडर की लंबी प्रक्रिया के कारण मेडिकल उपकरण लंबे वक्त तक खराब पड़े रह जाते हैं। रिम्स में 148 जगहों पर अतिक्रमण है, जिन्हें हटाना जरूरी है। --(आईएएनएस)