बच्चों का बढ़ता स्क्रीन टाइम कैसे करें काबू

आज की दुनिया में जब सभी गैजेट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं तो बच्चे भी इससे अछूते नहीं है. लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि स्मार्टफोन का इस्तेमाल उनके विकास और सीखने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है. डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट- प्रीति तोमर के सात साल के बेटे के स्कूल में गर्मी की छुट्टी हो चुकी है और वह इस बात से इन दिनों बहुत परेशान है कि वह अपने बेटे को स्मार्टफोन से कैसे दूर रखें. प्रीति कहती हैं कि उन्होंने अपने बेटे को स्मार्टफोन से दूर रखने के लिए बहुत से उपाय किए हैं - जैसे कि उन्होंने बाजार से पेंटिंग बुक, कहानियों की किताबें, खिलौने और घर के अंदर खेले जाने वाले खेल खरीद लिए हैं. लेकिन फिर भी उन्हें यह भरोसा नहीं है कि उनके बेटे आयुष का मन इन सब चीजों से बहल जाएगा. प्रीति कहती हैं, कुछ समय तक के लिए वह इन चीजों से खेल तो लेगा लेकिन असल मुद्दा है कि बाकी का समय वह क्या करेगा. खाने के वक्त खासकर वह मोबाइल देखने की जिद्द करता है. अगर मोबाइल ना दो तो वह खाना नहीं खाता है और रोने लगता है. गर्मी की छुट्टी लंबी चलेगी और प्रीति जिस बात को लेकर परेशान हैं अधिकांश माता-पिता भी इसी बात से चिंतित हैं. प्रीति को डर इस बात का भी है कि अगर उनका बेटा ज्यादा स्मार्टफोन देखता है तो कहीं उसकी आंखें कमजोर न हो जाए. फिलहाल आयुष नजर का चश्मा तो नहीं लगाता लेकिन डॉक्टर उसे कम से कम स्मार्टफोन के इस्तेमाल को लेकर पहले ही चेतावनी दे चुके हैं. परिवार से दूर, स्क्रीन के करीब पहले किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि लंबे समय तक स्क्रीन के करीब रहने से छोटे बच्चों की कम्युनिकेशन और प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल सीखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है. इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का कहना है कि एक साल से कम उम्र के बच्चों को बिल्कुल भी स्क्रीन के संपर्क में नहीं लाना चाहिए. नोएडा के एक निजी अस्पताल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. विनोद बख्शी डीडब्ल्यू से कहते हैं, इन निर्देशों का बमुश्किल पालन किया जाता है और माता-पिता अक्सर छोटे बच्चों को बिजी रखने के लिए एनीमेशन वीडियो या गाने बजाते हैं. डॉ. बख्शी ने कहा, इसका बच्चे के विकास पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है और इसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए. बच्चों के विकास पर असर डॉ. बख्शी कहते हैं, छोटे बच्चों को जो भी बताया जाता है या दिखाया जाता है, वे उसे जल्दी अपना लेते हैं. उन्होंने कहा एक्टिव कम्युनिकेशन में शामिल नहीं किए जाने से उनमें बातचीत करने या अपनी इच्छाओं को जाहिर करने का कौशल डेवलेप नहीं हो पाता है. उन्होंने आगे कहा कि लंबे समय तक स्क्रीन पर रहने से शारीरिक गतिविधियों के अवसर भी कम हो जाते हैं. साथ ही वह यह भी कहते हैं कि ज्यादा स्क्रीन टाइम का असर नींद के पैटर्न को खराब करता है और ध्यान संबंधी समस्याओं में योगदान देता है. क्योंकि आज के इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के युग में स्क्रीन टाइम को सामान्य रूप से सीमित करना कठिन है. आंखों की विशेषज्ञ डॉ. गीता श्नीनिवासन कहती हैं बच्चों को शुरुआती दिनों से बताना चाहिए कि मोबाइल उनके लिए कितना हानिकारक है और साथ ही पैरेंट्स को भी उनके सामने जितना हो सके कम से कम मोबाइल इस्तेमाल करना चाहिए. डॉ. श्नीनिवासन के मुताबिक बच्चा जब छोटा होता है तो वह कार्टून देखता है लेकिन जब बड़ा होने लगता है तो वह ऑनलाइन गेम्स खेलने लगता है, ऐसे में उसे स्मार्टफोन की लत लग जाती है और इस तरह से आंख कमजोर होने लगती है. उन्होंने कहा, बच्चों को आउटडोर खेल, पढ़ने और रचनात्मक शौक के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. स्मार्टफोन से कैसे बच्चे रहें दूर विशेषज्ञों का कहना है कि मां-बाप को बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए. उनको कहानी सुनानी चाहिए, उनके साथ खेलना चाहिए और हो सके उस दौरान मोबाइल को जितना दूर हो सके उतना दूर रखना चाहिए ताकि मां-बाप के साथ बच्चों का ध्यान उसपर न जाए. विशेषज्ञ कहते हैं कि कोई भी गैजेट और स्क्रीन पर बिताया गया समय भाई-बहनों और परिवार के सच्चे प्यार की जगह नहीं ले सकता. इसलिए सबसे महत्वपूर्ण चीज रिश्ते हैं और बच्चों को समय देना बहुत अहम. डॉ. बख्शी कहते हैं, समय तेजी से बदल रहा है. हमारे बच्चों के पास छह साल का होने से पहले क्वालिटी टाइम से अधिक स्क्रीन टाइम होता है. इस शुरुआती उम्र के दौरान समय का निवेश करना बच्चे के विकास के लिए अमूल्य और महत्वपूर्ण है. हाल ही में एक सर्वे रिपोर्ट में कहा गया कि बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर 89 फीसदी भारतीय मां चिंता करती हैं. मार्केट रिसर्च कंपनी टेकऑर्क के इस सर्वे में 600 कामकाजी मांओं ने भाग लिया. रिपोर्ट में कहा गया, मांओं का मानना है कि स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है, उनके मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है.(dw.com)

बच्चों का बढ़ता स्क्रीन टाइम कैसे करें काबू
आज की दुनिया में जब सभी गैजेट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं तो बच्चे भी इससे अछूते नहीं है. लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि स्मार्टफोन का इस्तेमाल उनके विकास और सीखने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है. डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट- प्रीति तोमर के सात साल के बेटे के स्कूल में गर्मी की छुट्टी हो चुकी है और वह इस बात से इन दिनों बहुत परेशान है कि वह अपने बेटे को स्मार्टफोन से कैसे दूर रखें. प्रीति कहती हैं कि उन्होंने अपने बेटे को स्मार्टफोन से दूर रखने के लिए बहुत से उपाय किए हैं - जैसे कि उन्होंने बाजार से पेंटिंग बुक, कहानियों की किताबें, खिलौने और घर के अंदर खेले जाने वाले खेल खरीद लिए हैं. लेकिन फिर भी उन्हें यह भरोसा नहीं है कि उनके बेटे आयुष का मन इन सब चीजों से बहल जाएगा. प्रीति कहती हैं, कुछ समय तक के लिए वह इन चीजों से खेल तो लेगा लेकिन असल मुद्दा है कि बाकी का समय वह क्या करेगा. खाने के वक्त खासकर वह मोबाइल देखने की जिद्द करता है. अगर मोबाइल ना दो तो वह खाना नहीं खाता है और रोने लगता है. गर्मी की छुट्टी लंबी चलेगी और प्रीति जिस बात को लेकर परेशान हैं अधिकांश माता-पिता भी इसी बात से चिंतित हैं. प्रीति को डर इस बात का भी है कि अगर उनका बेटा ज्यादा स्मार्टफोन देखता है तो कहीं उसकी आंखें कमजोर न हो जाए. फिलहाल आयुष नजर का चश्मा तो नहीं लगाता लेकिन डॉक्टर उसे कम से कम स्मार्टफोन के इस्तेमाल को लेकर पहले ही चेतावनी दे चुके हैं. परिवार से दूर, स्क्रीन के करीब पहले किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि लंबे समय तक स्क्रीन के करीब रहने से छोटे बच्चों की कम्युनिकेशन और प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल सीखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है. इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का कहना है कि एक साल से कम उम्र के बच्चों को बिल्कुल भी स्क्रीन के संपर्क में नहीं लाना चाहिए. नोएडा के एक निजी अस्पताल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. विनोद बख्शी डीडब्ल्यू से कहते हैं, इन निर्देशों का बमुश्किल पालन किया जाता है और माता-पिता अक्सर छोटे बच्चों को बिजी रखने के लिए एनीमेशन वीडियो या गाने बजाते हैं. डॉ. बख्शी ने कहा, इसका बच्चे के विकास पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है और इसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए. बच्चों के विकास पर असर डॉ. बख्शी कहते हैं, छोटे बच्चों को जो भी बताया जाता है या दिखाया जाता है, वे उसे जल्दी अपना लेते हैं. उन्होंने कहा एक्टिव कम्युनिकेशन में शामिल नहीं किए जाने से उनमें बातचीत करने या अपनी इच्छाओं को जाहिर करने का कौशल डेवलेप नहीं हो पाता है. उन्होंने आगे कहा कि लंबे समय तक स्क्रीन पर रहने से शारीरिक गतिविधियों के अवसर भी कम हो जाते हैं. साथ ही वह यह भी कहते हैं कि ज्यादा स्क्रीन टाइम का असर नींद के पैटर्न को खराब करता है और ध्यान संबंधी समस्याओं में योगदान देता है. क्योंकि आज के इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के युग में स्क्रीन टाइम को सामान्य रूप से सीमित करना कठिन है. आंखों की विशेषज्ञ डॉ. गीता श्नीनिवासन कहती हैं बच्चों को शुरुआती दिनों से बताना चाहिए कि मोबाइल उनके लिए कितना हानिकारक है और साथ ही पैरेंट्स को भी उनके सामने जितना हो सके कम से कम मोबाइल इस्तेमाल करना चाहिए. डॉ. श्नीनिवासन के मुताबिक बच्चा जब छोटा होता है तो वह कार्टून देखता है लेकिन जब बड़ा होने लगता है तो वह ऑनलाइन गेम्स खेलने लगता है, ऐसे में उसे स्मार्टफोन की लत लग जाती है और इस तरह से आंख कमजोर होने लगती है. उन्होंने कहा, बच्चों को आउटडोर खेल, पढ़ने और रचनात्मक शौक के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. स्मार्टफोन से कैसे बच्चे रहें दूर विशेषज्ञों का कहना है कि मां-बाप को बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए. उनको कहानी सुनानी चाहिए, उनके साथ खेलना चाहिए और हो सके उस दौरान मोबाइल को जितना दूर हो सके उतना दूर रखना चाहिए ताकि मां-बाप के साथ बच्चों का ध्यान उसपर न जाए. विशेषज्ञ कहते हैं कि कोई भी गैजेट और स्क्रीन पर बिताया गया समय भाई-बहनों और परिवार के सच्चे प्यार की जगह नहीं ले सकता. इसलिए सबसे महत्वपूर्ण चीज रिश्ते हैं और बच्चों को समय देना बहुत अहम. डॉ. बख्शी कहते हैं, समय तेजी से बदल रहा है. हमारे बच्चों के पास छह साल का होने से पहले क्वालिटी टाइम से अधिक स्क्रीन टाइम होता है. इस शुरुआती उम्र के दौरान समय का निवेश करना बच्चे के विकास के लिए अमूल्य और महत्वपूर्ण है. हाल ही में एक सर्वे रिपोर्ट में कहा गया कि बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर 89 फीसदी भारतीय मां चिंता करती हैं. मार्केट रिसर्च कंपनी टेकऑर्क के इस सर्वे में 600 कामकाजी मांओं ने भाग लिया. रिपोर्ट में कहा गया, मांओं का मानना है कि स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है, उनके मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है.(dw.com)