पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों ने एक बार फिर दिल्ली में प्रदर्शन करने की योजना बनाई है. क्या एक बार फिर किसान आंदोलन उतना सफल हो पाएगा जितना पिछली बार हुआ था?
डॉयचेवैलेपरचारुकार्तिकेयकीरिपोर्ट-
लोकसभा चुनावों से ठीक पहले किसानों के आंदोलन का एक बार फिर खड़ा होना केंद्र सरकार के लिए मुसीबत बन सकता है. पंजाब के कई किसान संगठनों ने मंगलवार को दिल्ली तक प्रोटेस्ट मार्च का आह्वान किया है, जिसके तहत किसान हजारों ट्रैक्टरों पर सवार होकर दिल्ली जाएंगे.
भारत की कुछ स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से करीब 20,000 किसान दिल्ली जा सकते हैं. सोमवार को किसान संगठनों और केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों के बीच चंडीगढ़ में एक बैठक भी होनी है.
प्रदर्शन रोकने की कोशिशें
इस बैठक में सरकार की तरफ से केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा, वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के शामिल होने की उम्मीद है. किसानों ने कहा है कि आगे की कार्रवाई इस बैठक के नतीजे पर निर्भर करेगी.
लेकिन प्रशासन किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए कई प्रयास कर रहा है. इन राज्यों से लगी दिल्ली की सभी सीमाओं पर भारी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया गया है. किसानों को रोकने के लिए सीमेंट के बैरिकेड, कंटीली तारें और नुकीले उपकरणों को भी सड़कों पर लगाया गया है.
दिल्ली में एक महीने के लिए धारा 144 लागू कर दी गई है जिसके तहत किसी भी तरह का प्रदर्शन, जुलूस या यात्रा निकलना प्रतिबंधित कर दिया गया है. किसान नेताओं का कहना है कि दूसरे राज्यों में भी इसी तरह के प्रतिबंध लागू कर दिए गए हैं.
पिछली बार जब किसानों ने आंदोलन किया था तब मुख्य रूप से उनकी मांग थी कि सरकार जो तीन नए कृषि कानून लाई थी उन्हें वापस लिया जाए. कई महीने तक आंदोलन के जारी रहने के बाद सरकार ने तीनों कानून को वापस ले ही लिया था.
अब क्या मांगें हैं किसानों की
इस बार किसान वहीं से अपनी बात को आगे बढ़ाना चाह रहे हैं. इस बार उन्होंने करीब एक दर्जन मांगें सामने रखी हैं. इनमें मुख्य मांग है स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के मुताबिक सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर एक कानून लाना.
इसके अलावा अन्य मांगें हैं - किसानों और मजदूरों के लिए पूरी तरह से ऋण माफी, लखीमपुर खीरी हत्याकांड के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा और प्रभावित किसानों को न्याय, पिछले किसान आंदोलन में मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी, किसानों और खेत मजदूरों के लिए पेंशन, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 को फिर से लाना, विश्व व्यापार संगठन से भारत को निकाल लेना और सभी मुक्त व्यापार संधियों पर बैन लगा देना, मनरेगा को खेती से जोड़ा जाना, साल में 200 दिन रोजगार की गारंटी और 700 रुपए दिहाड़ी दिया जाना.
पिछली बार किसान आंदोलन तब खत्म हुआ था जब सरकार ने तीनों नए कानूनों को वापस लेने के अलावा एमएसपी पर एक समिति बना कर फैसला लेने का वादा किया था. लेकिन दो सालों से ज्यादा समय निकल जाने के बावजूद अभी तक उस समिति की अंतिम रिपोर्ट भी नहीं आई है.(dw.com)
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों ने एक बार फिर दिल्ली में प्रदर्शन करने की योजना बनाई है. क्या एक बार फिर किसान आंदोलन उतना सफल हो पाएगा जितना पिछली बार हुआ था?
डॉयचेवैलेपरचारुकार्तिकेयकीरिपोर्ट-
लोकसभा चुनावों से ठीक पहले किसानों के आंदोलन का एक बार फिर खड़ा होना केंद्र सरकार के लिए मुसीबत बन सकता है. पंजाब के कई किसान संगठनों ने मंगलवार को दिल्ली तक प्रोटेस्ट मार्च का आह्वान किया है, जिसके तहत किसान हजारों ट्रैक्टरों पर सवार होकर दिल्ली जाएंगे.
भारत की कुछ स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से करीब 20,000 किसान दिल्ली जा सकते हैं. सोमवार को किसान संगठनों और केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों के बीच चंडीगढ़ में एक बैठक भी होनी है.
प्रदर्शन रोकने की कोशिशें
इस बैठक में सरकार की तरफ से केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा, वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के शामिल होने की उम्मीद है. किसानों ने कहा है कि आगे की कार्रवाई इस बैठक के नतीजे पर निर्भर करेगी.
लेकिन प्रशासन किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए कई प्रयास कर रहा है. इन राज्यों से लगी दिल्ली की सभी सीमाओं पर भारी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया गया है. किसानों को रोकने के लिए सीमेंट के बैरिकेड, कंटीली तारें और नुकीले उपकरणों को भी सड़कों पर लगाया गया है.
दिल्ली में एक महीने के लिए धारा 144 लागू कर दी गई है जिसके तहत किसी भी तरह का प्रदर्शन, जुलूस या यात्रा निकलना प्रतिबंधित कर दिया गया है. किसान नेताओं का कहना है कि दूसरे राज्यों में भी इसी तरह के प्रतिबंध लागू कर दिए गए हैं.
पिछली बार जब किसानों ने आंदोलन किया था तब मुख्य रूप से उनकी मांग थी कि सरकार जो तीन नए कृषि कानून लाई थी उन्हें वापस लिया जाए. कई महीने तक आंदोलन के जारी रहने के बाद सरकार ने तीनों कानून को वापस ले ही लिया था.
अब क्या मांगें हैं किसानों की
इस बार किसान वहीं से अपनी बात को आगे बढ़ाना चाह रहे हैं. इस बार उन्होंने करीब एक दर्जन मांगें सामने रखी हैं. इनमें मुख्य मांग है स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के मुताबिक सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर एक कानून लाना.
इसके अलावा अन्य मांगें हैं - किसानों और मजदूरों के लिए पूरी तरह से ऋण माफी, लखीमपुर खीरी हत्याकांड के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा और प्रभावित किसानों को न्याय, पिछले किसान आंदोलन में मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी, किसानों और खेत मजदूरों के लिए पेंशन, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 को फिर से लाना, विश्व व्यापार संगठन से भारत को निकाल लेना और सभी मुक्त व्यापार संधियों पर बैन लगा देना, मनरेगा को खेती से जोड़ा जाना, साल में 200 दिन रोजगार की गारंटी और 700 रुपए दिहाड़ी दिया जाना.
पिछली बार किसान आंदोलन तब खत्म हुआ था जब सरकार ने तीनों नए कानूनों को वापस लेने के अलावा एमएसपी पर एक समिति बना कर फैसला लेने का वादा किया था. लेकिन दो सालों से ज्यादा समय निकल जाने के बावजूद अभी तक उस समिति की अंतिम रिपोर्ट भी नहीं आई है.(dw.com)