अमरावती, 18 फरवरी । आंध्र प्रदेश की तीन राजधानियाँ बनाने की योजना को चार साल बाद भी अमली जामा नहीं पहना पाने के बाद राज्य की सत्तारूढ़ वाईएसआर काँग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) ने चुनाव से कुछ सप्ताह पहले राजधानी की कहानी में एक नया मोड़ जोड़ दिया है।
वाईएसआरसीपी नेता वाई.वी. सुब्बा रेड्डी का कहना है कि हैदराबाद को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों की संयुक्त राजधानी बनाये रखना चाहिए, जब तक कि आंध्र प्रदेश की अपनी राजधानी न हो।
मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के चाचा सुब्बा रेड्डी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि उन्होंने अपनी ओर से कुछ नहीं कहा होगा। इस बयान को बहस का रुख बदलने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि विपक्षी टीडीपी-जन सेना गठबंधन ने राज्य को राजधानी विहीन रखने के लिए जगन सरकार पर तीखा हमला किया है।
आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत हैदराबाद को 2 जून 2014 से 2 जून 2024 तक 10 वर्षों के लिए दोनों तेलुगु राज्यों की संयुक्त राजधानी बनना था, जिसके बाद यह अकेले तेलंगाना की राजधानी होगी।
हैदराबाद तेलंगाना के क्षेत्र के अंदर स्थित है। लेकिन तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने शेष आंध्र प्रदेश के उन लोगों को शांत करने के लिए इसे दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी बनाने पर सहमति व्यक्त की, जो 1956 से संयुक्त राज्य की राजधानी रहे शहर को खोने से नाराज थे। 10 साल की अवधि का उद्देश्य आंध्र प्रदेश को अपनी राजधानी बनाने का अवसर देना भी था। कई उतार-चढ़ाव के बाद, आज भी बिना राजधानी के है।
आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन.चंद्रबाबू नायडू ने साल 2016 में प्रसाशन का केंद्र अमरावती में स्थानांतरित कर दिया था, जहां 6 अक्टूबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नई राजधानी शहर की आधारशिला रखी गई थी।
नायडू के पास अमरावती को एक विश्व स्तरीय शहर के रूप में विकसित करने की भव्य योजना थी। उन्होंने क्षेत्र के 29 गांवों के किसानों को लैंड पूलिंग के तहत अपनी जमीन देने के लिए सफलतापूर्वक मना लिया था। टीडीपी सरकार ने मेगा प्रोजेक्ट के कुछ घटकों पर भी काम किया था।
हालांकि 2019 के चुनाव में टीडीपी की हार ने सब कुछ बदल दिया। जगन मोहन रेड्डी ने विपक्ष के नेता के रूप में अमरावती को राज्य की राजधानी बनाने का समर्थन किया था, लेकिन सत्ता में आने के कुछ महीनों बाद उन्होंने इसे त्याग दिया।
ऩए सीएम ने 17 दिसंबर 2019 को राज्य विधानसभा में घोषणा की थी कि उनकी सरकार विकेंद्रीकृत विकास सुनिश्चित करने के लिए तीन राजधानियाँ बनाएगी।
वाईएसआरसीपी सरकार ने विशाखापट्टनम को प्रशासनिक राजधानी, कुरनूल को न्यायिक राजधानी और अमरावती को विधायी राजधानी बनाने का प्रस्ताव रखा।
अमरावती के जिन किसानों ने राजधानी के लिए 33 हजार एकड़ जमीन दी थी, वे विरोध में थे। उन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों और जन संगठनों के नेताओं के साथ मिलकर अदालत का दरवाजा खटखटाया।
चार साल बाद भी तीन राजधानियों का मुद्दा कानूनी पचड़े में है। जगन बार-बार घोषणाओं के बावजूद अपना कार्यालय विशाखापट्टनम में स्थानांतरित नहीं कर सके।
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, चंद्रबाबू नायडू ने तीन राजधानियों को पूरा करने में विफल रहने के लिए जगन पर हमला तेज कर दिया है।
सुब्बा रेड्डी का बयान वाईएसआरसीपी द्वारा एक नई बहस शुरू करके इस ओर से ध्यान हटाने का एक स्पष्ट प्रयास है।
हालांकि, वाईएसआरसीपी के भीतर हैदराबाद को संयुक्त राजधानी का दर्जा 2 जून 2024 से आगे बढ़ाने के पक्ष में बहुत कम लोग हैं।
--(आईएएनएस)
अमरावती, 18 फरवरी । आंध्र प्रदेश की तीन राजधानियाँ बनाने की योजना को चार साल बाद भी अमली जामा नहीं पहना पाने के बाद राज्य की सत्तारूढ़ वाईएसआर काँग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) ने चुनाव से कुछ सप्ताह पहले राजधानी की कहानी में एक नया मोड़ जोड़ दिया है।
वाईएसआरसीपी नेता वाई.वी. सुब्बा रेड्डी का कहना है कि हैदराबाद को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों की संयुक्त राजधानी बनाये रखना चाहिए, जब तक कि आंध्र प्रदेश की अपनी राजधानी न हो।
मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के चाचा सुब्बा रेड्डी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि उन्होंने अपनी ओर से कुछ नहीं कहा होगा। इस बयान को बहस का रुख बदलने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि विपक्षी टीडीपी-जन सेना गठबंधन ने राज्य को राजधानी विहीन रखने के लिए जगन सरकार पर तीखा हमला किया है।
आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत हैदराबाद को 2 जून 2014 से 2 जून 2024 तक 10 वर्षों के लिए दोनों तेलुगु राज्यों की संयुक्त राजधानी बनना था, जिसके बाद यह अकेले तेलंगाना की राजधानी होगी।
हैदराबाद तेलंगाना के क्षेत्र के अंदर स्थित है। लेकिन तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने शेष आंध्र प्रदेश के उन लोगों को शांत करने के लिए इसे दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी बनाने पर सहमति व्यक्त की, जो 1956 से संयुक्त राज्य की राजधानी रहे शहर को खोने से नाराज थे। 10 साल की अवधि का उद्देश्य आंध्र प्रदेश को अपनी राजधानी बनाने का अवसर देना भी था। कई उतार-चढ़ाव के बाद, आज भी बिना राजधानी के है।
आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन.चंद्रबाबू नायडू ने साल 2016 में प्रसाशन का केंद्र अमरावती में स्थानांतरित कर दिया था, जहां 6 अक्टूबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नई राजधानी शहर की आधारशिला रखी गई थी।
नायडू के पास अमरावती को एक विश्व स्तरीय शहर के रूप में विकसित करने की भव्य योजना थी। उन्होंने क्षेत्र के 29 गांवों के किसानों को लैंड पूलिंग के तहत अपनी जमीन देने के लिए सफलतापूर्वक मना लिया था। टीडीपी सरकार ने मेगा प्रोजेक्ट के कुछ घटकों पर भी काम किया था।
हालांकि 2019 के चुनाव में टीडीपी की हार ने सब कुछ बदल दिया। जगन मोहन रेड्डी ने विपक्ष के नेता के रूप में अमरावती को राज्य की राजधानी बनाने का समर्थन किया था, लेकिन सत्ता में आने के कुछ महीनों बाद उन्होंने इसे त्याग दिया।
ऩए सीएम ने 17 दिसंबर 2019 को राज्य विधानसभा में घोषणा की थी कि उनकी सरकार विकेंद्रीकृत विकास सुनिश्चित करने के लिए तीन राजधानियाँ बनाएगी।
वाईएसआरसीपी सरकार ने विशाखापट्टनम को प्रशासनिक राजधानी, कुरनूल को न्यायिक राजधानी और अमरावती को विधायी राजधानी बनाने का प्रस्ताव रखा।
अमरावती के जिन किसानों ने राजधानी के लिए 33 हजार एकड़ जमीन दी थी, वे विरोध में थे। उन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों और जन संगठनों के नेताओं के साथ मिलकर अदालत का दरवाजा खटखटाया।
चार साल बाद भी तीन राजधानियों का मुद्दा कानूनी पचड़े में है। जगन बार-बार घोषणाओं के बावजूद अपना कार्यालय विशाखापट्टनम में स्थानांतरित नहीं कर सके।
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, चंद्रबाबू नायडू ने तीन राजधानियों को पूरा करने में विफल रहने के लिए जगन पर हमला तेज कर दिया है।
सुब्बा रेड्डी का बयान वाईएसआरसीपी द्वारा एक नई बहस शुरू करके इस ओर से ध्यान हटाने का एक स्पष्ट प्रयास है।
हालांकि, वाईएसआरसीपी के भीतर हैदराबाद को संयुक्त राजधानी का दर्जा 2 जून 2024 से आगे बढ़ाने के पक्ष में बहुत कम लोग हैं।
--(आईएएनएस)