जिम कॉर्बेट के मुख्य क्षेत्र में बाघ सफारी पर क्यों लगा बैन

सुप्रीम कोर्ट ने वन्यजीव संरक्षण पर चिंताओं का हवाला देते हुए बुधवार को जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्रों में बाघ सफारी पर प्रतिबंध लगा दिया. डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट- उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में जंगल सफारी पर सख्त रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जिम कॉर्बेट वन रिजर्व के मुख्य क्षेत्रों में बाघ सफारी पर बैन लगा दिया. सुप्रीम कोर्ट ने टाइगर रिजर्व में पेड़ों की अभूतपूर्व कटाई और पर्यावरणीय क्षति पर भी राज्य सरकार की खिंचाई की. अदालत ने कॉर्बेट में अवैध निर्माण, पेड़ों की कटाई पर तीन महीने के भीतर स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी है. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय वन्यजीव संरक्षण योजना संरक्षित इलाकों से परे वन्यजीव संरक्षण की जरूरत को पहचानती है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच पर्यावरण कार्यकर्ता और वकील गौरव बंसल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. बंसल ने राष्ट्रीय उद्यान के अंदर बाघ सफारी और पिंजरे में बंद जानवरों वाले चिड़ियाघर के उत्तराखंड सरकार के प्रस्ताव को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट: बाघ की रक्षा जरूरी सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान महाभारत के एक उदाहरण का हवाला देते हुए कहा जंगल बाघ की रक्षा करता है और बाघ जंगल की रक्षा करता है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अब केवल जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के परिधीय और बफर जोन में ही बाघ सफारी की अनुमति दी जाएगी. उत्तराखंड सरकार ने पहले कुछ वीवीआईपी के लिए मुख्य क्षेत्रों में सफारी की अनुमति दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ पर कड़ी टिप्पणी की है और कहा है कि इससे जंगलों को भारी नुकसान हुआ है. पेड़ों की कटाई, अवैध निर्माण पर सख्त हुआ कोर्ट इसके अलावा अदालत ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के भीतर अवैध निर्माण गतिविधियों और अनाधिकृत पेड़ों की कटाई में शामिल होने के लिए उत्तराखंड के पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और पूर्व प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) किशन चंद को फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में यह बिना किसी संदेह के स्पष्ट है कि तत्कालीन वन मंत्री खुद को कानून से ऊपर समझ बैठे थे और यह दर्शाता है कि कैसे डीएफओ ने सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत को हवा में उड़ा दिया था. कोर्ट ने कहा इससे पता चलता है कि राजनेता और नौकरशाह कैसे कानून को अपने हाथ में लेते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई के कारण हुए नुकसान के संबंध में पहले से ही मामले की जांच कर रही सीबीआई को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है. साथ ही उसने राज्य सरकार को जंगल की बहाली सुनिश्चित करने का निर्देश दिया. याचिकाकर्ता गौरव बंसल ने चिड़ियाघर से बाघ लाकर सफारी के नाम पर उन्हें बफर जोन में रखने और कॉर्बेट पार्क में हुए अवैध निर्माण कार्य को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. साल 2021 में रावत के वन मंत्री रहते हुए कालागढ़ रेंज में पेड़ों की कटाई हुई थी. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इससे पहले टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण के मामले में रावत और चंद के आवासों पर छापेमारी की थी. इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रावत पर तल्ख टिप्पणी की और जिम कार्बेट नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्रों में टाइगर सफारी पर प्रतिबंध लगा दिया.(dw.com)

जिम कॉर्बेट के मुख्य क्षेत्र में बाघ सफारी पर क्यों लगा बैन
सुप्रीम कोर्ट ने वन्यजीव संरक्षण पर चिंताओं का हवाला देते हुए बुधवार को जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्रों में बाघ सफारी पर प्रतिबंध लगा दिया. डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट- उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में जंगल सफारी पर सख्त रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जिम कॉर्बेट वन रिजर्व के मुख्य क्षेत्रों में बाघ सफारी पर बैन लगा दिया. सुप्रीम कोर्ट ने टाइगर रिजर्व में पेड़ों की अभूतपूर्व कटाई और पर्यावरणीय क्षति पर भी राज्य सरकार की खिंचाई की. अदालत ने कॉर्बेट में अवैध निर्माण, पेड़ों की कटाई पर तीन महीने के भीतर स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी है. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय वन्यजीव संरक्षण योजना संरक्षित इलाकों से परे वन्यजीव संरक्षण की जरूरत को पहचानती है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच पर्यावरण कार्यकर्ता और वकील गौरव बंसल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. बंसल ने राष्ट्रीय उद्यान के अंदर बाघ सफारी और पिंजरे में बंद जानवरों वाले चिड़ियाघर के उत्तराखंड सरकार के प्रस्ताव को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट: बाघ की रक्षा जरूरी सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान महाभारत के एक उदाहरण का हवाला देते हुए कहा जंगल बाघ की रक्षा करता है और बाघ जंगल की रक्षा करता है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अब केवल जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के परिधीय और बफर जोन में ही बाघ सफारी की अनुमति दी जाएगी. उत्तराखंड सरकार ने पहले कुछ वीवीआईपी के लिए मुख्य क्षेत्रों में सफारी की अनुमति दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ पर कड़ी टिप्पणी की है और कहा है कि इससे जंगलों को भारी नुकसान हुआ है. पेड़ों की कटाई, अवैध निर्माण पर सख्त हुआ कोर्ट इसके अलावा अदालत ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के भीतर अवैध निर्माण गतिविधियों और अनाधिकृत पेड़ों की कटाई में शामिल होने के लिए उत्तराखंड के पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और पूर्व प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) किशन चंद को फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में यह बिना किसी संदेह के स्पष्ट है कि तत्कालीन वन मंत्री खुद को कानून से ऊपर समझ बैठे थे और यह दर्शाता है कि कैसे डीएफओ ने सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत को हवा में उड़ा दिया था. कोर्ट ने कहा इससे पता चलता है कि राजनेता और नौकरशाह कैसे कानून को अपने हाथ में लेते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई के कारण हुए नुकसान के संबंध में पहले से ही मामले की जांच कर रही सीबीआई को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है. साथ ही उसने राज्य सरकार को जंगल की बहाली सुनिश्चित करने का निर्देश दिया. याचिकाकर्ता गौरव बंसल ने चिड़ियाघर से बाघ लाकर सफारी के नाम पर उन्हें बफर जोन में रखने और कॉर्बेट पार्क में हुए अवैध निर्माण कार्य को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. साल 2021 में रावत के वन मंत्री रहते हुए कालागढ़ रेंज में पेड़ों की कटाई हुई थी. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इससे पहले टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण के मामले में रावत और चंद के आवासों पर छापेमारी की थी. इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रावत पर तल्ख टिप्पणी की और जिम कार्बेट नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्रों में टाइगर सफारी पर प्रतिबंध लगा दिया.(dw.com)