आपराधिक मामले में किसी व्यक्ति को बरी करना ही तलाक देने का आधार नहीं हो सकता : न्यायालय

नयी दिल्ली, 7 मार्च दिल्ली उच्च न्यायालय का कहना है कि आपराधिक मामले में किसी व्यक्ति को बरी कर देना ही तलाक देने का आधार नहीं हो सकता है। अदालत ने एक व्यक्ति की उस याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की जिसमें उसने अपने पक्ष में तलाक का आदेश दिये जाने का अनुरोध किया था और दावा किया था कि उसकी पत्नी ने उसके साथ क्रूरता की है। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि निचली अदालत में एक आपराधिक मामले में व्यक्ति को बरी कर दिए जाने से वह अपने विवाह के अस्तित्व में रहने के दौरान किसी अन्य महिला के साथ संबंध बनाकर पत्नी पर की गई क्रूरता की बात को खारिज नहीं कर सकता है। पीठ ने कहा कि वैवाहिक बंधन नाजुक भावनात्मक मानवीय संबंध होते हैं और इसमें किसी तीसरे व्यक्ति के शामिल होने से आपसी विश्वास और शांति पूरी तरह से खत्म हो सकती है। उच्च न्यायालय ने उस व्यक्ति की अपील खारिज कर दी और क्रूरता के आधार पर उसे तलाक देने से इनकार करने संबंधी निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा। मामले के अनुसार, इस जोड़े की शादी 1982 में हुई थी और उनके दो बच्चे थे। वर्ष 1994 में वे अलग रहने लगे। इस व्यक्ति ने दावा किया था कि उसकी पत्नी ने उसकी देखभाल करने से इनकार कर दिया था और यहां तक कि उस पर हमला भी किया था। उसने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी के आचरण ने उसकी मानसिक शांति भंग कर दी थी और उसे खाना पकाने और बच्चों की देखभाल सहित सभी घरेलू काम करने के लिए मजबूर किया गया था, और उसने क्रूरता के आधार पर तलाक मांगा। महिला ने हालांकि दावा किया था कि उसके पति के एक बहुत छोटी उम्र की महिला के साथ अवैध संबंध थे और जब 1993 में उसे इसके बारे में पता चला, तो उनके बीच मतभेद पैदा हो गए। महिला ने अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं 498 ए (क्रूरता) और 406 (विश्वासघात) के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) भी दर्ज कराई। व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को आरोप तय करने के चरण में ही आरोपमुक्त कर दिया गया था, लेकिन उसे 2013 में बरी कर दिया गया था। व्यक्ति ने किसी अन्य महिला के साथ अवैध संबंध होने संबंधी आरोप से इनकार किया, लेकिन स्वीकार किया कि यह महिला उसके घर में उसके साथ बच्चों की देखभाल करने के लिए रहने आई थी।(भाषा)

आपराधिक मामले में किसी व्यक्ति को बरी करना ही तलाक देने का आधार नहीं हो सकता : न्यायालय
नयी दिल्ली, 7 मार्च दिल्ली उच्च न्यायालय का कहना है कि आपराधिक मामले में किसी व्यक्ति को बरी कर देना ही तलाक देने का आधार नहीं हो सकता है। अदालत ने एक व्यक्ति की उस याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की जिसमें उसने अपने पक्ष में तलाक का आदेश दिये जाने का अनुरोध किया था और दावा किया था कि उसकी पत्नी ने उसके साथ क्रूरता की है। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि निचली अदालत में एक आपराधिक मामले में व्यक्ति को बरी कर दिए जाने से वह अपने विवाह के अस्तित्व में रहने के दौरान किसी अन्य महिला के साथ संबंध बनाकर पत्नी पर की गई क्रूरता की बात को खारिज नहीं कर सकता है। पीठ ने कहा कि वैवाहिक बंधन नाजुक भावनात्मक मानवीय संबंध होते हैं और इसमें किसी तीसरे व्यक्ति के शामिल होने से आपसी विश्वास और शांति पूरी तरह से खत्म हो सकती है। उच्च न्यायालय ने उस व्यक्ति की अपील खारिज कर दी और क्रूरता के आधार पर उसे तलाक देने से इनकार करने संबंधी निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा। मामले के अनुसार, इस जोड़े की शादी 1982 में हुई थी और उनके दो बच्चे थे। वर्ष 1994 में वे अलग रहने लगे। इस व्यक्ति ने दावा किया था कि उसकी पत्नी ने उसकी देखभाल करने से इनकार कर दिया था और यहां तक कि उस पर हमला भी किया था। उसने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी के आचरण ने उसकी मानसिक शांति भंग कर दी थी और उसे खाना पकाने और बच्चों की देखभाल सहित सभी घरेलू काम करने के लिए मजबूर किया गया था, और उसने क्रूरता के आधार पर तलाक मांगा। महिला ने हालांकि दावा किया था कि उसके पति के एक बहुत छोटी उम्र की महिला के साथ अवैध संबंध थे और जब 1993 में उसे इसके बारे में पता चला, तो उनके बीच मतभेद पैदा हो गए। महिला ने अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं 498 ए (क्रूरता) और 406 (विश्वासघात) के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) भी दर्ज कराई। व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को आरोप तय करने के चरण में ही आरोपमुक्त कर दिया गया था, लेकिन उसे 2013 में बरी कर दिया गया था। व्यक्ति ने किसी अन्य महिला के साथ अवैध संबंध होने संबंधी आरोप से इनकार किया, लेकिन स्वीकार किया कि यह महिला उसके घर में उसके साथ बच्चों की देखभाल करने के लिए रहने आई थी।(भाषा)