अमूल अमेरिकी दूध बाज़ार पर पकड़ बनाने के लिए कर रहा ये कोशिश

रॉक्सी गागडेकर छारा अमेरिका में बसे भारतीय लोगों के पास अपने घर को याद करने की तमाम वजहें हो सकती हैं. लेकिन अब उनके पास ऐसी एक वजह कम हो चुकी है, जो उन्हें घर की याद दिलाती हो. यह वजह है भारत में मिलने वाले गाय का दूध और उस दूध का स्वाद. गुजरात की आणंद डेयरी से साल 1946 में शुरू हुआ दूध का अमूल ब्रांड अब अमेरिकी बाज़ारों में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश में लगा हुआ है. अमेरिका में रहने वालों तक भारत के दूध का स्वाद पहुंचाने के लिए अमूल ने अमेरिका में मिशिगन मिल्क प्रोड्यूसर एसोसिएशन (एमएमपीए) के साथ साझेदारी की है. एमएमपीए मिशिगन, इंडियाना, ओहायो और विस्कॉन्सिन के चार राज्यों में डेयरी उत्पादकों का 108 साल पुराना सहकारी संगठन है. यह गुजरात के अमूल के समान ही है. एमएमपीए अमेरिका में भारतीय समुदाय के लिए अमूल दूध के स्वाद वाले दूध की ख़रीद और पैकेजिंग कर इसे लोगों के लिए उपलब्ध करा रहा है. अमूल के प्रबंध निदेशक जयेन मेहताने बीबीसी को बताया, मुख्य रूप से अपनी गुणवत्ता और ब्रांडिंग की वजह से अमूल तरल दूध को लेकर अमेरिका में बसे भारतीय आबादी में बड़ी संभावना देखता है. एमएमपीए अमूल गोल्ड, अमूल शक्ति और अमूल ताज़ा जैसे कई अमूल उत्पादों के लिए दूध ख़रीदता है. भारतीय लोगों के बीच बड़े पैमाने पर इस्तेमाल में आने वाले पनीर, दही, चीज़ जैसे कई डेयरी उत्पाद हमेशा से अमेरिकी बाज़ार में उपलब्ध रहे हैं. आंकड़ोंके मुताबिक़ साल 2024 में अमेरिकी दूध बाज़ार का राजस्व 30.35 अरब डॉलर होने का अनुमान है. इस बाज़ार में सालाना 3.21 फ़ीसदी की बढ़ौत्तरी होने की भी उम्मीद है. साल 2024 में 71 अरब डॉलर के राजस्व के साथ इस मामले में भारत पूरी दुनिया में सबसे आगे है. ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ अमूल 36 लाख़ डेयरी किसानों और 18 सदस्य संघों के साथ मिलकर हर रोज़ क़रीब एक करोड़ 30 लाख़ लीटर दूध का उत्पादन करता है. रूथ हेरेडियाकी पुस्तकद अमूल इंडिया स्टोरीके मुताबिक़ सरदार वल्लभभाई पटेल ने गुजरात के खेड़ा ज़िले के किसानों को निजी कंपनी को दूध न बेचने और अपनी ख़ुद की सहकारी समिति बनाने के लिए प्रोत्साहित किया था. इस का मुख्यालय बाद में गुजरात के ही आणंद में स्थानांतरित कर दिया गया और त्रिभुवनदास पटेल को इस सहकारी समिति का प्रमुख बनाया गया. डॉ. वर्गीज़ कुरियनने अपनी आत्मकथाआई टू हैड ड्रीममें बताया है कि अमूल ने 200 लीटर दूध से अपने व्यापार की शुरुआत की थी जो साल 1952 में 20 हज़ार लीटर तक पहुंच गई. डॉ. वर्गीज़ कुरियन को भारत में श्वेत क्रांति का जनक भी कहा जाता है. उन्होंने एक ब्रांड के रूप में अमूल को बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. हालाँकि अमेरिकी बाज़ार के बारे में कुछ लोगों का कहना है कि अमूल के लिए वहाँ रास्ता चुनौतीपूर्ण हो सकता है. यूएसडीए(अमेरिका का कृषि विभाग) के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में तरल दूध की दैनिक प्रति व्यक्ति खपत पिछले सात दशकों में कम हुई है. अमेरिका में मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि अमेरिकी पब्लिक स्कूल ऐतिहासिक रूप से दूध के बड़े ख़रीददार रहे हैं क्योंकि वो भोजन में बच्चों को नाश्ते और दोपहर के भोजन के लिए दूध देते हैं. हालांकि दूध के कम स्वादिष्ट होने की वजह से बच्चे इसे पीना नहीं चाहते हैं, इससे पब्लिक स्कूलों में दूध की खपत कम हो गई है. इसके अलावा अमेरिका में लोग बिना लैक्टोज़ वाले दूध और पौधों से मिलने वाले बादाम का दूध, नारियल का दूध और सोया के दूध को अपनाल रहे हैं. इससे भी वहाँ दूध की खपत में गिरावट आई है. अमेरिका में अमूल का स्वाद कैसे आया? भारत में अमूल गोल्ड दूध में 6 फ़ीसदी फ़ैट होता है, इसी स्वाद का दूध अमेरिका में तैयार करना अमूल के लिए शुरू में बड़ी चुनौती थी.AMUL USA/X जानकारों के मुताबिक़ अमेरिकी दूध बाज़ार में कम फ़ैट (वसा) वाला दूध सबसे अधिक बिकता है. दूसरी ओर अमूल भारत में अमूल गोल्ड की तरह ज़्यादा वसा वाला दूध बेचता है, जिसमें 6 फीसदी फ़ैट होता है. अमेरिका में अमूल के लिए चुनौती, स्थानीय किसानों से ख़रीदे गए दूध में वही स्वाद पैदा करने की थी, जो भारत में अमूल दूध में मौजूद होता है. अमूल के प्रबंध निदेशक जयेन मेहता बताते हैं कि शुरुआत में इस बात पर चिंता थी कि इतने अधिक वसा वाले दूध का उत्पादन कैसे किया जाए. वो कहते हैं, लेकिन गुजरात सहकारी दूध विपणन महासंघ यानी जीसीएमएमएफ और अमूल की टीम की मदद से परीक्षणों के बाद अमूल गोल्ड और अमूल शक्ति दूध का उत्पादन अब अमेरिका में किया जा सकता है. एमएमपीए के अध्यक्ष और सीईओ जो डिग्लियोके मुताबिक़, हमारे पास मौजूद सुविधाओं की वजह से हम जिस स्वाद का दूध बनाना चाहते थे, हमने वह बना लिया. एमएमपीए ने इस दूध में मिलाए जाने वाले सभी पदार्थों का मानकीकरण भी किया है. उन्होंने बीबीसी को बताया, हमने दूध से क्रीम को अलग कर दिया. जिसे बाद में बिक्री के लिए जाने से पहले स्किम्ड दूध में वसा की मात्रा बढ़ाने के लिए ज़रूरत के अनुसार मिलाया जा सकता है. यह कैसे काम करता है? अमूल का दूध ओहायो के सुपीरियर डेयरी प्लांट में प्रोसेस किया जाता है. जयेन मेहता कहते हैं, किसानों की सहकारी संस्था होने के नाते एमएमपीए के पास किसानों का एक बड़ा नेटवर्क है और वो ही अमूल के लिए दूध खरीदते हैं. फिर दूध की पूरी तरह से जांच की जाती है और कुछ तकनीकी पहलुओं के उपयोग के साथ इसे भारतीय स्वाद के अनुसार तैयार किया जाता है. एमएमपीए ने पेटेंट के तहत ख़ुद तरल दूध के संचालन का तरीका तैयार किया है और इसमें जल्द ही बदलाव की भी संभावना है. इससे संयंत्र में कुछ ही समय में उत्पाद लाइनों को बदला जा सकता है. वहीं डिग्लियो बताते हैं, हम अमूल दूध के उत्पादन के लिए किसी अलग तकनीक का उपयोग नहीं कर रहे हैं. लेकिन संयंत्र से दूध को जितनी जल्दी संभव हो बाहर निकालने के लिए हमने इस प्रक्रिया में कुछ ख़ास तकनीक भी जोड़ा है. भारतीय प्रवासियों से दूर अमूल के जयेन मेहता का मानना है कि यह क

अमूल अमेरिकी दूध बाज़ार पर पकड़ बनाने के लिए कर रहा ये कोशिश
रॉक्सी गागडेकर छारा अमेरिका में बसे भारतीय लोगों के पास अपने घर को याद करने की तमाम वजहें हो सकती हैं. लेकिन अब उनके पास ऐसी एक वजह कम हो चुकी है, जो उन्हें घर की याद दिलाती हो. यह वजह है भारत में मिलने वाले गाय का दूध और उस दूध का स्वाद. गुजरात की आणंद डेयरी से साल 1946 में शुरू हुआ दूध का अमूल ब्रांड अब अमेरिकी बाज़ारों में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश में लगा हुआ है. अमेरिका में रहने वालों तक भारत के दूध का स्वाद पहुंचाने के लिए अमूल ने अमेरिका में मिशिगन मिल्क प्रोड्यूसर एसोसिएशन (एमएमपीए) के साथ साझेदारी की है. एमएमपीए मिशिगन, इंडियाना, ओहायो और विस्कॉन्सिन के चार राज्यों में डेयरी उत्पादकों का 108 साल पुराना सहकारी संगठन है. यह गुजरात के अमूल के समान ही है. एमएमपीए अमेरिका में भारतीय समुदाय के लिए अमूल दूध के स्वाद वाले दूध की ख़रीद और पैकेजिंग कर इसे लोगों के लिए उपलब्ध करा रहा है. अमूल के प्रबंध निदेशक जयेन मेहताने बीबीसी को बताया, मुख्य रूप से अपनी गुणवत्ता और ब्रांडिंग की वजह से अमूल तरल दूध को लेकर अमेरिका में बसे भारतीय आबादी में बड़ी संभावना देखता है. एमएमपीए अमूल गोल्ड, अमूल शक्ति और अमूल ताज़ा जैसे कई अमूल उत्पादों के लिए दूध ख़रीदता है. भारतीय लोगों के बीच बड़े पैमाने पर इस्तेमाल में आने वाले पनीर, दही, चीज़ जैसे कई डेयरी उत्पाद हमेशा से अमेरिकी बाज़ार में उपलब्ध रहे हैं. आंकड़ोंके मुताबिक़ साल 2024 में अमेरिकी दूध बाज़ार का राजस्व 30.35 अरब डॉलर होने का अनुमान है. इस बाज़ार में सालाना 3.21 फ़ीसदी की बढ़ौत्तरी होने की भी उम्मीद है. साल 2024 में 71 अरब डॉलर के राजस्व के साथ इस मामले में भारत पूरी दुनिया में सबसे आगे है. ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ अमूल 36 लाख़ डेयरी किसानों और 18 सदस्य संघों के साथ मिलकर हर रोज़ क़रीब एक करोड़ 30 लाख़ लीटर दूध का उत्पादन करता है. रूथ हेरेडियाकी पुस्तकद अमूल इंडिया स्टोरीके मुताबिक़ सरदार वल्लभभाई पटेल ने गुजरात के खेड़ा ज़िले के किसानों को निजी कंपनी को दूध न बेचने और अपनी ख़ुद की सहकारी समिति बनाने के लिए प्रोत्साहित किया था. इस का मुख्यालय बाद में गुजरात के ही आणंद में स्थानांतरित कर दिया गया और त्रिभुवनदास पटेल को इस सहकारी समिति का प्रमुख बनाया गया. डॉ. वर्गीज़ कुरियनने अपनी आत्मकथाआई टू हैड ड्रीममें बताया है कि अमूल ने 200 लीटर दूध से अपने व्यापार की शुरुआत की थी जो साल 1952 में 20 हज़ार लीटर तक पहुंच गई. डॉ. वर्गीज़ कुरियन को भारत में श्वेत क्रांति का जनक भी कहा जाता है. उन्होंने एक ब्रांड के रूप में अमूल को बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. हालाँकि अमेरिकी बाज़ार के बारे में कुछ लोगों का कहना है कि अमूल के लिए वहाँ रास्ता चुनौतीपूर्ण हो सकता है. यूएसडीए(अमेरिका का कृषि विभाग) के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में तरल दूध की दैनिक प्रति व्यक्ति खपत पिछले सात दशकों में कम हुई है. अमेरिका में मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि अमेरिकी पब्लिक स्कूल ऐतिहासिक रूप से दूध के बड़े ख़रीददार रहे हैं क्योंकि वो भोजन में बच्चों को नाश्ते और दोपहर के भोजन के लिए दूध देते हैं. हालांकि दूध के कम स्वादिष्ट होने की वजह से बच्चे इसे पीना नहीं चाहते हैं, इससे पब्लिक स्कूलों में दूध की खपत कम हो गई है. इसके अलावा अमेरिका में लोग बिना लैक्टोज़ वाले दूध और पौधों से मिलने वाले बादाम का दूध, नारियल का दूध और सोया के दूध को अपनाल रहे हैं. इससे भी वहाँ दूध की खपत में गिरावट आई है. अमेरिका में अमूल का स्वाद कैसे आया? भारत में अमूल गोल्ड दूध में 6 फ़ीसदी फ़ैट होता है, इसी स्वाद का दूध अमेरिका में तैयार करना अमूल के लिए शुरू में बड़ी चुनौती थी.AMUL USA/X जानकारों के मुताबिक़ अमेरिकी दूध बाज़ार में कम फ़ैट (वसा) वाला दूध सबसे अधिक बिकता है. दूसरी ओर अमूल भारत में अमूल गोल्ड की तरह ज़्यादा वसा वाला दूध बेचता है, जिसमें 6 फीसदी फ़ैट होता है. अमेरिका में अमूल के लिए चुनौती, स्थानीय किसानों से ख़रीदे गए दूध में वही स्वाद पैदा करने की थी, जो भारत में अमूल दूध में मौजूद होता है. अमूल के प्रबंध निदेशक जयेन मेहता बताते हैं कि शुरुआत में इस बात पर चिंता थी कि इतने अधिक वसा वाले दूध का उत्पादन कैसे किया जाए. वो कहते हैं, लेकिन गुजरात सहकारी दूध विपणन महासंघ यानी जीसीएमएमएफ और अमूल की टीम की मदद से परीक्षणों के बाद अमूल गोल्ड और अमूल शक्ति दूध का उत्पादन अब अमेरिका में किया जा सकता है. एमएमपीए के अध्यक्ष और सीईओ जो डिग्लियोके मुताबिक़, हमारे पास मौजूद सुविधाओं की वजह से हम जिस स्वाद का दूध बनाना चाहते थे, हमने वह बना लिया. एमएमपीए ने इस दूध में मिलाए जाने वाले सभी पदार्थों का मानकीकरण भी किया है. उन्होंने बीबीसी को बताया, हमने दूध से क्रीम को अलग कर दिया. जिसे बाद में बिक्री के लिए जाने से पहले स्किम्ड दूध में वसा की मात्रा बढ़ाने के लिए ज़रूरत के अनुसार मिलाया जा सकता है. यह कैसे काम करता है? अमूल का दूध ओहायो के सुपीरियर डेयरी प्लांट में प्रोसेस किया जाता है. जयेन मेहता कहते हैं, किसानों की सहकारी संस्था होने के नाते एमएमपीए के पास किसानों का एक बड़ा नेटवर्क है और वो ही अमूल के लिए दूध खरीदते हैं. फिर दूध की पूरी तरह से जांच की जाती है और कुछ तकनीकी पहलुओं के उपयोग के साथ इसे भारतीय स्वाद के अनुसार तैयार किया जाता है. एमएमपीए ने पेटेंट के तहत ख़ुद तरल दूध के संचालन का तरीका तैयार किया है और इसमें जल्द ही बदलाव की भी संभावना है. इससे संयंत्र में कुछ ही समय में उत्पाद लाइनों को बदला जा सकता है. वहीं डिग्लियो बताते हैं, हम अमूल दूध के उत्पादन के लिए किसी अलग तकनीक का उपयोग नहीं कर रहे हैं. लेकिन संयंत्र से दूध को जितनी जल्दी संभव हो बाहर निकालने के लिए हमने इस प्रक्रिया में कुछ ख़ास तकनीक भी जोड़ा है. भारतीय प्रवासियों से दूर अमूल के जयेन मेहता का मानना है कि यह कहना ग़लत है कि अमेरिका में किसी को अधिक वसा वाला दूध पसंद नहीं है. कई अमेरिकी अपनी कॉफी में एक्स्ट्रा क्रीम मिलाते हैं, और उस क्रीम को अमूल तरल दूध से बदला जा सकता है. जो डिग्लियो का मानना है कि अमेरिका में इसने अपनी भारतीय पहचान से दूर निकलना शुरू कर दिया है और अमेरिका में कई लोग इसे पसंद कर रहे हैं. उन्होंने कहा, इसे लेकर लोगों में एक तरह की जागरूकता और भरोसा है कि यह कुछ अलग है. बहुत अच्छे मायने में अलग... अमेरिका में अपनी मौजूदगी को दिखाने के लिए अमूल ने अमेरिकी क्रिकेट टीम को भी प्रायोजित किया है और ब्रांड का लोगो टीम की टी20 क्रिकेट टीम की टी-शर्ट पर देखा गया था. जयेन मेहता का कहना है, हम अमेरिका में सोशल मीडिया और भारतीय समुदाय के निजी व्हाट्सएप ग्रुप में मौजूद हैं. उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रांड की वजह से अमेरिका में अमूल को भी फायदा होगा, लेकिन अमूल की चुनौती अमेरिका के खाद्य मानकों के तहत अपना उत्पादन बनाए रखने में होगा. डिग्लियो का कहना है, हम उच्च गुणवत्ता वाले दूध का इस्तेमाल करते हैं. हमारे निर्माता सहकारी समिति के सदस्य हैं और मानकों के अनुसार उत्पाद तैयार करने की हमारी कोशिश जारी है. उन्होंने कहा, एक सहकारी समिति के तौर पर यह हम पर निर्भर है कि हमारी समिति को मिलने वाले दूध की तरह ही, अमूल ब्रांड के साथ भी वही प्रक्रिया लागू की जाए. (bbc.com/hindi) बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित