अब हिन्दी नामों के साथ भारत में उड़ेंगी तितलियां

भारत में अंग्रेजों के जमाने में तितलियों के नाम भी अंग्रेजी में ही रखे गए थे. लेकिन अब राष्ट्रीय तितली नामकरण सभा ने तितलियों के नाम हिन्दी में रखने की पहल की है. डॉयचे वैले पर रामांशी मिश्रा की रिपोर्ट- विश्व भर में तितलियों की 15 हजार से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं. वहीं, भारत में 1,400 से अधिक तितलियों की प्रजातियां हैं. इन तितलियों में एक नाखून से भी छोटे आकार की रत्नमाला (ग्रास ज्वेल) और 150 मीटर से अधिक पंख फैलाने वाली रंगोली जटायु (गोल्डन बर्डविंग) तक शामिल हैं. भारत में तितलियों की खोज अंग्रेजों के जमाने में शुरू हुई थी. तब उनके नाम भी अंग्रेजी में रखे गए थे. लेकिन अब हिन्दी में तितलियों के नाम रखने को लेकर जुलाई 2023 में राष्ट्रीय तितली नामकरण सभा का गठन किया गया है. इस सभा में वैज्ञानिक, पर्यावरणविद, प्रकृति प्रेमी, भाषा विशेषज्ञ, वनाधिकारी समेत कई अन्य सदस्य शामिल हैं. सभा में शामिल सदस्य देश के अलग अलग हिस्सों से जुड़े हुए हैं. प्रोफेसर कृष्णमेघ कुंटे, धारा ठक्कर और रूपक डे के साथ इसमें नेशनल बटरफ्लाई क्लब मुंबई के सचिव दिवाकर थोंब्रे, स्प्राउट्स संस्था मुंबई के सीईओ आनंद पेंढारकर, हिन्दी भाषा विशेषज्ञ और झारखंड तितली समूह के संस्थापक मनीष कुमार, उत्तर प्रदेश पर्यटन विकास निगम के मैनेजर रतींद्र पांडे और देहरादून स्थित दून नेचर वॉक के विशेषज्ञ राहुल काला शामिल हैं. पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा हैं तितलियां बहुत ही छोटे जीवनकाल वाली तितलियां पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य चक्र में एक विशेष भूमिका निभाती है. झारखंड में नेचुरल ज्वैल्स संस्था की संस्थापक और पर्यावरणविद धारा ठक्कर ने डीडब्ल्यू को बताया, जैव विविधता में तितलियां बड़ी भूमिका निभाती है. सामान्य तौर पर जिस जगह पर तितलियां नहीं होती वहां का पर्यावरण अच्छा नहीं माना जाता. कंक्रीट के जंगलों के बीच भी यदि एक हरा भरा वातावरण है तो वहां तितलियां अपने आप ही आने लगती हैं. साथ ही तितलियां हवा, पानी और मिट्टी तीनों को शुद्ध करती हैं. वह आगे बताती हैं, आम जनमानस के बीच तितलियों को लेकर जागरूकता की कमी है. ऐसे में आसान भाषा में तितलियों के हिन्दी नाम रखे गए हैं ताकि लोग भी इनके संरक्षण में कुछ योगदान दे सकें. केवल उत्तर प्रदेश में ही तितलियों की 200 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्व वनाधिकारी रूपक डे ने डीडब्ल्यू को बताया, पिछले छह महीनों में सभा के सदस्यों ने मिलकर हिन्दी में भारतीय तितलियों के नाम रखने के लिए उनके वैज्ञानिक और अंग्रेजी नाम, उनकी विशेषताएं, व्यवहार और अन्य पहलुओं पर विमर्श किया ताकि उनके आसान नाम रखे जा सकें. तितलियों के नाम ऐसे रखे गए हैं जिन्हें याद करना आसान हो, जो अंग्रेजी नाम का सिर्फ अनुवाद न हो बल्कि स्थानीय संस्कृति के अनुरूप हो. इसके लिए प्रजातियों की रुपात्मक विशेषताओं के साथ उनकी उड़ान, व्यवहार, मेजबान पौधों और प्रजातियों के कैटरपिलर आदि पर आधारित नाम भी रखे गए हैं. रामायण के किरदारों की भूमिका बेंगलुरू स्थित नैशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज में एसोसिएट प्रोफेसर कृष्णमेघ कुंटे ने डीडब्ल्यू को बताया, तितलियों के नाम रखने में रामायण के विभिन्न किरदारों की भी भूमिका रही है. रावण के दरबार में अंगद के पैर को कोई नहीं हिला पाया था. उसी के आधार पर गोल्डन एंगल प्रजाति की तितली का नाम अंगद रखा गया है क्योंकि यह अपने मूल स्थान से जल्दी विस्थापित नहीं होती. उनकी प्रजातियों में स्पॉटेड एंगल का नाम चित्तीदार अंगद, एलिदा एंगल का नाम अलिदा अंगद, ब्लैक एंगल का नाम कृष्णा प्रतल और गोल्डन एंगल का नाम सुनहरा अंगद रखा गया है. इसी तरह बड़े पंखों वाली बर्डविंग तितली का नाम जटायु के नाम पर रखा गया है. कॉमन वर्डविंग का नाम बिंदी जटायु, गोल्डन बर्डविंग का नाम रंगोली जटायु और सह्याद्री बर्डविंग का नाम सह्याद्री जटायु रखा गया है. क्षेत्रीय भाषाओं को नहीं मिली सफलता रूपक डे ने बताया, 1902 में डी-रे फिलिप ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तितलियों की 92 प्रजातियों की खोज की थी. अंग्रेजों ने जब तितलियों की खोज की थी तो उन्हें कमांडर, जोकर, कैस्टर, सेलर जैसे नाम दिए थे. हालांकि, आजादी के बाद तितलियों पर काम हुआ. हाल के 20 वर्षों में पर्यावरणविदों और प्रकृति प्रेमियों ने तितलियों के संरक्षण पर काम शुरू किया. प्रोफेसर कृष्णमेघ ने डीडब्ल्यू को बताया, इससे पहले एक छोटे मराठी संगठन ने 1980 के दशक में तितलियों के नामकरण किए थे, लेकिन उसे अधिक सफलता नहीं मिली. यही हाल कन्नड़ और मलयालम भाषा के साथ हुआ. क्षेत्रीय भाषाओं में नामकरण के प्रारूप को लेकर कोई दिशा-निर्देश तय न होने से उन्हें सफलता नहीं मिल सकी. मराठी में दोबारा हुए नामकरण को पहचान मिली. हिन्दी भाषा में भी नामकरण से पहले इसे लेकर सभा ने कुछ दिशा निर्देश तय किए. उस आधार पर तितलियों के नाम रखे गए. प्यार भरे नाम भी किए गए शामिल तितलियों के कई ऐसे भी नाम रखे गए हैं जो हिन्दी भाषी क्षेत्रों में बच्चों को प्यार से पुकारे जाते हैं. जैसे डार्लेट प्रजाति की तितली का नाम लाडली रखा गया है, स्मॉलर डोरलेट तितली का नाम छुटकी लाडली, स्मॉल क्यूपिड का नाम छोटा मदन, कार्नेलियन का नाम लालन, ग्रास ब्लूज का नाम नीलू रखा गया है. ग्रास डार्ट्स नामक तितली का नाम घसियारा रखा गया है. कुछ तितलियों का नाम उनके मेजबान पौधों के आधार पर रखा गया है. जैसे, चंपा के पौधे पर सबसे अधिक बसने वाली तितली ग्रास डेमोन का नाम डोलन चंपा रखा गया है. इसके अलावा नींबू के पौधे पर लार्वा रखने वाली लाइम ब्लू तितली का नाम निंबुड़ा रखा गया है. बड़े आकार की तितली ब्लू मॉर्मोन या ग्रेट मॉर्मोन का नाम बहुरूपिया रखा गया है. इस प्रजाति में पंखों पर मोर के पंखों जैसी धारियां होती हैं. ऐसे में कुछ अन्य तितलियों के नाम मालाबारी मयूरी, दख्खन मयूरी, मखमली मयूरी और कृष्णा मयूरी रखे गए हैं. संरक्षण पर काम जरूरी तितलियों के संरक्षण 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अब हिन्दी नामों के साथ भारत में उड़ेंगी तितलियां
भारत में अंग्रेजों के जमाने में तितलियों के नाम भी अंग्रेजी में ही रखे गए थे. लेकिन अब राष्ट्रीय तितली नामकरण सभा ने तितलियों के नाम हिन्दी में रखने की पहल की है. डॉयचे वैले पर रामांशी मिश्रा की रिपोर्ट- विश्व भर में तितलियों की 15 हजार से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं. वहीं, भारत में 1,400 से अधिक तितलियों की प्रजातियां हैं. इन तितलियों में एक नाखून से भी छोटे आकार की रत्नमाला (ग्रास ज्वेल) और 150 मीटर से अधिक पंख फैलाने वाली रंगोली जटायु (गोल्डन बर्डविंग) तक शामिल हैं. भारत में तितलियों की खोज अंग्रेजों के जमाने में शुरू हुई थी. तब उनके नाम भी अंग्रेजी में रखे गए थे. लेकिन अब हिन्दी में तितलियों के नाम रखने को लेकर जुलाई 2023 में राष्ट्रीय तितली नामकरण सभा का गठन किया गया है. इस सभा में वैज्ञानिक, पर्यावरणविद, प्रकृति प्रेमी, भाषा विशेषज्ञ, वनाधिकारी समेत कई अन्य सदस्य शामिल हैं. सभा में शामिल सदस्य देश के अलग अलग हिस्सों से जुड़े हुए हैं. प्रोफेसर कृष्णमेघ कुंटे, धारा ठक्कर और रूपक डे के साथ इसमें नेशनल बटरफ्लाई क्लब मुंबई के सचिव दिवाकर थोंब्रे, स्प्राउट्स संस्था मुंबई के सीईओ आनंद पेंढारकर, हिन्दी भाषा विशेषज्ञ और झारखंड तितली समूह के संस्थापक मनीष कुमार, उत्तर प्रदेश पर्यटन विकास निगम के मैनेजर रतींद्र पांडे और देहरादून स्थित दून नेचर वॉक के विशेषज्ञ राहुल काला शामिल हैं. पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा हैं तितलियां बहुत ही छोटे जीवनकाल वाली तितलियां पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य चक्र में एक विशेष भूमिका निभाती है. झारखंड में नेचुरल ज्वैल्स संस्था की संस्थापक और पर्यावरणविद धारा ठक्कर ने डीडब्ल्यू को बताया, जैव विविधता में तितलियां बड़ी भूमिका निभाती है. सामान्य तौर पर जिस जगह पर तितलियां नहीं होती वहां का पर्यावरण अच्छा नहीं माना जाता. कंक्रीट के जंगलों के बीच भी यदि एक हरा भरा वातावरण है तो वहां तितलियां अपने आप ही आने लगती हैं. साथ ही तितलियां हवा, पानी और मिट्टी तीनों को शुद्ध करती हैं. वह आगे बताती हैं, आम जनमानस के बीच तितलियों को लेकर जागरूकता की कमी है. ऐसे में आसान भाषा में तितलियों के हिन्दी नाम रखे गए हैं ताकि लोग भी इनके संरक्षण में कुछ योगदान दे सकें. केवल उत्तर प्रदेश में ही तितलियों की 200 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्व वनाधिकारी रूपक डे ने डीडब्ल्यू को बताया, पिछले छह महीनों में सभा के सदस्यों ने मिलकर हिन्दी में भारतीय तितलियों के नाम रखने के लिए उनके वैज्ञानिक और अंग्रेजी नाम, उनकी विशेषताएं, व्यवहार और अन्य पहलुओं पर विमर्श किया ताकि उनके आसान नाम रखे जा सकें. तितलियों के नाम ऐसे रखे गए हैं जिन्हें याद करना आसान हो, जो अंग्रेजी नाम का सिर्फ अनुवाद न हो बल्कि स्थानीय संस्कृति के अनुरूप हो. इसके लिए प्रजातियों की रुपात्मक विशेषताओं के साथ उनकी उड़ान, व्यवहार, मेजबान पौधों और प्रजातियों के कैटरपिलर आदि पर आधारित नाम भी रखे गए हैं. रामायण के किरदारों की भूमिका बेंगलुरू स्थित नैशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज में एसोसिएट प्रोफेसर कृष्णमेघ कुंटे ने डीडब्ल्यू को बताया, तितलियों के नाम रखने में रामायण के विभिन्न किरदारों की भी भूमिका रही है. रावण के दरबार में अंगद के पैर को कोई नहीं हिला पाया था. उसी के आधार पर गोल्डन एंगल प्रजाति की तितली का नाम अंगद रखा गया है क्योंकि यह अपने मूल स्थान से जल्दी विस्थापित नहीं होती. उनकी प्रजातियों में स्पॉटेड एंगल का नाम चित्तीदार अंगद, एलिदा एंगल का नाम अलिदा अंगद, ब्लैक एंगल का नाम कृष्णा प्रतल और गोल्डन एंगल का नाम सुनहरा अंगद रखा गया है. इसी तरह बड़े पंखों वाली बर्डविंग तितली का नाम जटायु के नाम पर रखा गया है. कॉमन वर्डविंग का नाम बिंदी जटायु, गोल्डन बर्डविंग का नाम रंगोली जटायु और सह्याद्री बर्डविंग का नाम सह्याद्री जटायु रखा गया है. क्षेत्रीय भाषाओं को नहीं मिली सफलता रूपक डे ने बताया, 1902 में डी-रे फिलिप ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तितलियों की 92 प्रजातियों की खोज की थी. अंग्रेजों ने जब तितलियों की खोज की थी तो उन्हें कमांडर, जोकर, कैस्टर, सेलर जैसे नाम दिए थे. हालांकि, आजादी के बाद तितलियों पर काम हुआ. हाल के 20 वर्षों में पर्यावरणविदों और प्रकृति प्रेमियों ने तितलियों के संरक्षण पर काम शुरू किया. प्रोफेसर कृष्णमेघ ने डीडब्ल्यू को बताया, इससे पहले एक छोटे मराठी संगठन ने 1980 के दशक में तितलियों के नामकरण किए थे, लेकिन उसे अधिक सफलता नहीं मिली. यही हाल कन्नड़ और मलयालम भाषा के साथ हुआ. क्षेत्रीय भाषाओं में नामकरण के प्रारूप को लेकर कोई दिशा-निर्देश तय न होने से उन्हें सफलता नहीं मिल सकी. मराठी में दोबारा हुए नामकरण को पहचान मिली. हिन्दी भाषा में भी नामकरण से पहले इसे लेकर सभा ने कुछ दिशा निर्देश तय किए. उस आधार पर तितलियों के नाम रखे गए. प्यार भरे नाम भी किए गए शामिल तितलियों के कई ऐसे भी नाम रखे गए हैं जो हिन्दी भाषी क्षेत्रों में बच्चों को प्यार से पुकारे जाते हैं. जैसे डार्लेट प्रजाति की तितली का नाम लाडली रखा गया है, स्मॉलर डोरलेट तितली का नाम छुटकी लाडली, स्मॉल क्यूपिड का नाम छोटा मदन, कार्नेलियन का नाम लालन, ग्रास ब्लूज का नाम नीलू रखा गया है. ग्रास डार्ट्स नामक तितली का नाम घसियारा रखा गया है. कुछ तितलियों का नाम उनके मेजबान पौधों के आधार पर रखा गया है. जैसे, चंपा के पौधे पर सबसे अधिक बसने वाली तितली ग्रास डेमोन का नाम डोलन चंपा रखा गया है. इसके अलावा नींबू के पौधे पर लार्वा रखने वाली लाइम ब्लू तितली का नाम निंबुड़ा रखा गया है. बड़े आकार की तितली ब्लू मॉर्मोन या ग्रेट मॉर्मोन का नाम बहुरूपिया रखा गया है. इस प्रजाति में पंखों पर मोर के पंखों जैसी धारियां होती हैं. ऐसे में कुछ अन्य तितलियों के नाम मालाबारी मयूरी, दख्खन मयूरी, मखमली मयूरी और कृष्णा मयूरी रखे गए हैं. संरक्षण पर काम जरूरी तितलियों के संरक्षण को लेकर कई देशों में काम हो रहा है. सिंगापुर के चांगी एयरपोर्ट पर ही बटरफ्लाई गार्डेन बनाया गया है. वहां तितलियों की 40 से अधिक प्रजातियां देखने को मिल सकती हैं. वहीं, दुबई में जलवायु अनुकूल न होने के बावजूद तितलियों के संरक्षण पर लगातार काम किया जा रहा है. धारा के अनुसार, तितलियां कई हजार किलोमीटर तक प्रवास कर सकती हैं. इनका जीवन चक्र थोड़े समय का होता है. ऐसे में प्रवास के दौरान ही उनकी पीढ़ियां भी जन्म ले लेती हैं. रूपक डे ने बताया, प्राथमिक तौर पर अभी हमने 231 तितलियों के हिन्दी नाम की पहली किस्त जारी की है जिन्हें हम शहरी हरियाली की तितलियां मानते हैं. दूसरे चरण में हिन्दी भाषी क्षेत्र में पाई जाने वाली बाकी प्रजातियों का नामकरण किया जा रहा है और तीसरे चरण में अन्य सभी तितलियों के नाम शामिल होंगे.(dw.com)