भगवा सफर... जनसंघ से भाजपा तक, 72 साल में 3 से 303 सांसदों तक पहुंची, बनी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का इतिहास भारतीय जनसंघ से जुड़ा है. 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में जनसंघ की स्थापना हुई थी जबकि बीजेपी का गठन 6 अप्रैल 1980 को हुआ. बीजेपी आज अपने सियासी इतिहास के सबसे बुलंद मुकाम पर है. केंद्र से लेकर देश के आधे से ज्यादा राज्यों की सत्ता पर वो काबिज है. शून्य से शिखर तक पहुंचने की उसकी यात्रा लंबे संघर्ष और उतार-चढ़ाव से भरी रही है. आइए, इसके माइलस्टोन्स पर डालते हैं एक नज़र...
कहां से शुरू हुआ सफ़र...
जनसंघ की बुनियाद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने रखी. आजादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी हिस्सा रहे, लेकिन 19 अप्रैल 1950 को उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर कांग्रेस के विकल्प के रूप में एक राजनीतिक दल खड़ा करने का फैसला किया.
मुखर्जी ने क्यों छोड़ी नेहरू कैबिनेट
भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद लाखों लोगों का पलायन हुआ. दोनों ही देश भीषण दंगों से पीड़ित थे, जिसके चलते नेहरू-लियाकत समझौता हुआ. इस समझौते में कहा गया था कि दोनों ही देश अपने-अपने देश में अल्पसंख्यक आयोग गठित करेंगे. पंडित नेहरू की नीतियों के विरोध में एक वैकल्पिक राजनीति की इच्छा डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के मन में पहले से थी. नेहरू-लियाकत समझौते को नेहरू की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति बताते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 19 अप्रैल 1950 को केंद्रीय उद्योग मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस के विकल्प के रूप में एक नई राजनीतिक पार्टी खड़ी करने का बीड़ा उठाया.
जनसंघ का गठन क्यों हुआ
जनसंघ बनने के पीछे मुख्य रूप से दो वजहें अहम रहीं, एक नेहरू-लियाकत समझौता और दूसरा महात्मा गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगना.
महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर लगे प्रतिबंध की वजह से देश का एक तबका यह मानने लगा था कि देश की राजनीति में कांग्रेस का विकल्प होना भी जरूरी है. संघ से जुड़े लोगों को भी सियासी मंच पर अपनी बात रखने के लिए एक राजनीतिक ठिकाने की जरूरत थी.
नेहरू सरकार से इस्तीफा देने के बाद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी संघ के तत्कालीन सरसंघचालक गुरु गोलवलकर से मिले, जहां जनसंघ के गठन की रणनीति बनी.
भारतीय जनसंघ की स्थापना 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में एक छोटे से कार्यक्रम में की गई.
जनसंघ के संस्थापक- डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, प्रोफेसर बलराज मधोक, दीनदयाल उपाध्याय
जनसंघ का चुनाव चिन्ह 'दीपक' और झंडा भगवा रंग का रखा गया
एक निशान; दो विधान, नहीं चलेगा...
इस मुद्दे को लेकर 1953 में जनसंघ ने पहला बड़ा अभियान जम्मू-कश्मीर में चलाया. बाकी राज्यों की तर्ज पर ही बिना किसी स्पेशल स्टेटस के कश्मीर को भारत में मिलाने की मांग थी. उस समय जम्मू-कश्मीर में जाने के लिए परमिट की जरूरत होती थी और वहां मुख्यमंत्री के बजाय प्रधानमंत्री का पद होता था.
डॉ. मुखर्जी इसे देश की एकता में बाधक नीति के रूप में देखते थे और इसके सख्त खिलाफ थे. 8 मई 1953 को डॉ मुखर्जी ने बिना परमिट जम्मू-कश्मीर की यात्रा शुरू कर दी. जम्मू में प्रवेश के बाद डॉ. मुखर्जी को वहां की शेख अब्दुल्ला सरकार ने 11 मई को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के महज 40 दिन बाद 23 जून 1953 को खबर आई कि मुखर्जी का निधन हो गया है.
जनसंघ से कैसे बनी जनता पार्टी
जनसंघ की सियासत में टर्निंग प्वाइंट साल 1975 में आया जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया. आपातकाल का जनसंघ के लोगों ने खुलकर विरोध किया. जनसंघ के जुड़े तमाम नेताओं को इसके लिए जेल में भी रहना पड़ा.
साल 1977 में जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल खत्म किया तो देश में आम चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई. विपक्षी दलों ने वैचारिक मतभेद भुलाकर इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी को परास्त करने के लिए जनता पार्टी बनाई.
जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया. जनता पार्टी का गठन संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय लोकदल, कांग्रेस (ओ), जनसंघ को मिलाकर किया गया था। 1977 के चुनाव में जनसंघ के आए नेताओं को अच्छी कामयाबी मिली.
मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी की केंद्र में सरकार बनी. जनता पार्टी की सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने तो लालकृष्ण आडवाणी सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे.
जनता पार्टी शुरू से ही कई धड़ों में बंटी हुई थी, जिनमें से एक मोरारजी देसाई का, दूसरा चौधरी चरण सिंह व राज नारायण का, तीसरा बाबू जगजीवन राम का और चौथा जनसंघ नेताओं का धड़ा था. समाजवादियों ने जनसंघ से आए नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था.
1978 में समाजवादी नेता मधु लिमये ने दोहरी सदस्यता का मुद्दा उठाया. इसके बाद बहस छिड़ गई कि जनता पार्टी में शामिल जनसंघ के लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनता पार्टी के सदस्य एक साथ नहीं रह सकते, क्योंकि जेपी ने जनसंघ नेताओं को इसी शर्त पर साथ लिया था कि वे आरएसएस की सदस्यता को पूरी तरह से छोड़ देंगे.
समाजवादियों ने जब उनको संघ की सदस्यता छोड़ने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया. ऐसे में इंदिरा गांधी के खिलाफ किया गया जनता पार्टी का सियासी प्रयोग विफल साबित हुआ. 1979 में जनता पार्टी की सरकार गिर गई. लोकदल के नेता चौधरी चरण सिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने.
जनता पार्टी से भारतीय जनता पार्टी
आरएसएस की सदस्यता छोड़ने के मुद्दे पर जनता पार्टी टूट गई. जनसंघ के नेताओं ने अपनी अलग पार्टी बनाने का निश्चय कर लिया. इस तरह भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई.
1980 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद जनता पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पास किया गया और जनता पार्टी के नेताओं का आरएसएस से जुड़ाव रखना प्रतिबंधित कर दिया गया. ऐसे में जनसंघ से जनता पार्टी में आए नेता नए सियासी विकल्प सोचने लगे. 1980 के आते-आते जनता पार्टी में समाजवादी और जनसंघ से जुड़े नेताओं के रास्ते अलग हो गए.
अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी सहित जनसंघ के अन्य नेताओं ने 6 अप्रैल, 1980 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में भारतीय जनता पार्टी के नाम से नई राजनीतिक पार्टी का ऐलान किया. अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी के पहले अध्यक्ष बने.
बीजेपी का चुनाव चिह्न कमल
जनसंघ का चुनाव चिह्न 'दीपक' था जबकि बीजेपी का चुनाव चिह्न 'कमल' का फूल रखा गया. बीजेपी संस्थापकों ने 'कमल' को चुनाव चिह्न इसलिए बनाया, क्योंकि इस चिह्न को ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारियों ने इस्तेमाल किया था. ये भारतीयता को दर्शाता है. कमल के फूल को हिंदू परंपरा से जोड़कर भी देखा जाता है. कमल राष्ट्रीय फूल भी है. इस तरह से कमल के फूल को चुनाव चिह्न बनाकर बीजेपी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद दोनों को साधती है.
भाजपा की दशा-दिशा...
राम मंदिर आंदोलन से पहले की बीजेपी
अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में बीजेपी 1984 में लोकसभा चुनाव में उतरी, लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति में बीजेपी को जनसंघ के पहले चुनाव से भी एक सीट कम मिली. बीजेपी को दो सीटें मिलीं. खुद अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव हार गए. लालकृष्ण आडवाणी चुनाव नहीं लड़े थे.
बीजेपी के पहले दो सांसद
1. गुजरात की मेहसाणा से एके पटेल
2. आंध्र प्रदेश की हनमकोंडा सीट से सी जंगा रेड्डी
1986 में लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो पार्टी को नई राह मिली. साल 1989 आते-आते राजीव गांधी सरकार बोफोर्स घोटाले से घिर चुकी थी तो दूसरी तरफ बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडे पर आगे बढ़ने का फैसला कर चुकी थी.
जून 1989 के पालमपुर अधिवेशन में बीजेपी ने पहली बार राम जन्मभूमि को मुक्त कराने और विवादित स्थल पर भव्य राम मंदिर के निर्माण का प्रस्ताव पारित किया. राममंदिर मुद्दे को बीजेपी ने अपने मुख्य राजनीतिक एजेंडे में रखा और अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया.
1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जबरदस्त तरीके से सियासी लाभ मिला. बीजेपी 2 सीटों से बढ़कर 85 सांसदों वाली पार्टी बन गई. कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने. बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार को बाहर से समर्थन दिया.
अटल-आडवाणी युग: हिंदुत्व को धार
राम मंदिर का मुद्दा बीजेपी के लिए संजीवनी साबित हुआ तो लालकृष्ण आडवाणी कट्टर हिंदुत्व का चेहरा बन गए. बीजेपी ने इसके बाद राम मंदिर मुद्दे को और भी धार देने की कवायद शुरू कर दी, क्योंकि वीपी सिंह सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दी थीं. बीजेपी ने आडवाणी के नेतृत्व में राम मंदिर आंदोलन शुरू करने का फैसला किया ताकि मंडल कमीशन के बाद लामबंद पिछड़े वर्ग की सियासत को काउंटर किया जा सके.
एक साथ तीन राज्यों में बीजेपी सरकार
आडवाणी के पार्टी अध्यक्ष रहते हुए बीजेपी पहली बार राज्य की सत्ता में आई. मार्च 1990 में एक साथ तीन राज्यों में पार्टी की सरकार बनी, जिनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश शामिल थे. भैरोंसिंह शेखावत राजस्थान के सीएम बने तो सुंदर लाल पटवा मध्य प्रदेश और उसी दिन शांता कुमार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इससे पहले बीजेपी किसी भी राज्य में अपना मुख्यमंत्री नहीं बना सकी थी. हालांकि, जनता पार्टी के कई सीएम रहे.
25 सितंबर 1990 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए राम रथ यात्रा शुरू की. इस रथ यात्रा में लाखों कार सेवक उनके साथ अयोध्या के लिए रवाना हुए. राम मंदिर मुद्दे के जरिए बीजेपी घर-घर पहुंची.
30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचने के लिए हजारों कारसेवक आडवाणी के साथ चल रहे थे. रथ यात्रा को 23 अक्टूबर 1990 को बिहार के समस्तीपुर में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की सरकार ने रोक दिया और आडवाणी को हिरासत में ले लिया, लेकिन लाखों की संख्या में कार सेवक अयोध्या के लिए कूच कर चुके थे. यूपी के तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने यहां कारसेवकों पर फायरिंग के आदेश दिए. इसके विरोध में बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया.
साल 1991 में बीजेपी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी बने. 1991 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 85 से बढ़कर 120 पर पहुंच गई. राममंदिर आंदोलन के चलते ही बीजेपी 1991 में यूपी की सत्ता पर काबिज हो गई और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने.
छह दिसंबर 1992 को कारसेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया. जिसके कारण पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया और हिंसा की कई घटनाएं हुईं. बीजेपी की चारों राज्य- यूपी, एमपी, राजस्थान और हिमाचल की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया.
राम मंदिर आंदोलन से जुड़ने के साथ ही बीजेपी का राजनीतिक उत्थान होता चला गया. बाबरी विध्वंस के बाद बीजेपी का राजनीतिक ग्राफ देश के अलग-अलग राज्यों में बढ़ गया. बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा और गुजरात तक में कमल खिलने लगा.
1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. अटल बिहारी वाजपेयी पहले 13 दिन फिर 13 माह के लिए प्रधानमंत्री बने. इसके बाद वाजपेयी साढ़े चार साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे, क्योंकि बीजेपी ने छह महीने पहले चुनाव करा लिया था. 2004 के आम चुनाव में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा और उसे साल 2014 तक देश की सत्ता से वनवास झेलना पड़ा.
मोदी युग-हिंदुत्व और राष्ट्रवाद
2014 के आम चुनाव से पहले बीजेपी की गोवा में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई जिसमें नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान का प्रमुख बनाया गया. बीजेपी ने इन चुनावों में 282 सीटों के साथ सत्ता में धमाकेदार वापसी की. यहां से बीजेपी में एक नए युग की शुरुआत हुई, जिसे मोदी-शाह युग के नाम से जाना जाता है.
इसके बाद बीजेपी की एक के बाद एक कई राज्यों में सरकार बनती गईं. दिसंबर 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, 'इंदिरा गांधी जब सत्ता में थीं तो कांग्रेस की सरकार 18 राज्यों में थी, लेकिन जब हम सत्ता में हैं तो हमारी सरकार 19 राज्यों में है.' मार्च 2018 तक बीजेपी 21 राज्यों तक पहुंच चुकी थी. यही बीजेपी का पीक था. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 2014 से भी बड़ी जीत हासिल की. इस चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटें जीतीं. ये पहली बार था जब किसी गैर-कांग्रेसी पार्टी को दूसरी बार बहुमत मिला था.
भविष्य की बीजेपी
72 साल, 3 से 303 सीटों का सफर और अब मोदी की बीजेपी की आगे की राह... पीएम मोदी ने कार्यकर्ताओं से कहा कि 2014 में सिर्फ सत्ता परिवर्तन ही नहीं हुआ बल्कि ये पुनर्जागरण का शंखनाद था. इसी के साथ पीएम मोदी ने बीजेपी की भविष्य की सियासी लकीर खींचते हुए 25 साल का रोडमैप भी सामने रखा. बीजेपी जब 50 साल की होगी तो कहां होगी? यहां से आगे कैसे बढ़ेगी और किस तरीके से इस लक्ष्य को हासिल करेगी पीएम मोदी ने कार्यकर्ताओं को इसका मंत्र भी दिया.
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