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हनुमान जन्मोत्सव विशेष

 हनुमानजी जब लंका से लौटकर आये तो राम जी ने उनको पूछा कि , रामजी के वियोग में सीताजी अपने प्राणों की रक्षा कैसे करती हैं ?

 
तो हनुमान जी ने जो जवाब दिया आप सभी को सुझाव है कि उसे याद कर लें । 
 
सीता जी ने अपने प्राणों की रक्षा कैसे की ये हनुमानजी के वचन हैं जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस के सुंदरकांड में वर्णित करते हुए लिखा है। 
 
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट ।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट ॥
 
आइए इस दोहे का अर्थ समझते हैं ।
' नाम पाहरू दिवस निसि ' सीता जी के चारों तरफ आप के नाम का पहरा है । क्योंकि वे रात दिन आप के नाम का ही जप करती हैं । सदैव राम जी का ही ध्यान धरती हैं और जब भी आँखें खोलती हैं तो अपने चरणों में नज़र टिकाकर आप के चरण कमलों को ही याद करती रहती हैं ।
 
तो ' जाहिं प्रान केहिं बाट '..... सोचिये की आप के घर के चारों तरफ कड़ा पहरा है । छत और ज़मीन की तरफ से भी किसी के घुसने का मार्ग बंद कर दिया है, क्या कोई चोर अंदर घुस सकता है..? ऐसे ही सीता जी ने सभी ओर से श्री रामजी का रक्षा कवच धारण कर लिया है ..इस प्रकार वे अपने प्राणों की रक्षा करती हैं । 
 
माना जाता है कि इस कवच के जाप करने से सभी संकट दूर हो जाते हैं तथा संकट से प्राणों की रक्षा होती है। 
 
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????जय श्रीराम ????
????जय बजरंग बली ????

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